वन संपदा योजना से संरक्षण और संवर्धन को मिलेगा बढ़ावा
सतीश अग्रवाल
बिलासपुर। वरदान बनने जा रही है वन संपदा योजना, उस रक्त चंदन के लिए, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संकटग्रस्त प्रजाति की सूची में शामिल किया जा चुका है। योजना में जिन प्रजातियों को लेकर रुझान बढ़ता नजर आ रहा है, उसमें यह शीर्ष पर है।
वन विभाग की रोपणियों में सालों बाद पौधों की खरीदी को लेकर रुझान देखा जा रहा है। यह भी पहली बार होगा जब निजी क्षेत्र, शासकीय मांग से काफी आगे चल रहा हैं। चाही जा रही प्रजाति के पौधों के नहीं मिलने से मांग का दबाव निजी नर्सरियों में बढ़त लेता नजर आ रहा है। रक्त चंदन ऐसी प्रजाति है, जिसके रोपण के लिए निजी क्षेत्र की मांग सबसे ज्यादा है।

है पसंद ग्रीष्म ऋतु
धीमी गति से बढ़ने वाला रक्त चंदन को तेज धूप बेहद पसंद है। यही वजह है कि यह 26 से 32 डिग्री सेल्सियस के तापमान में जोरदार बढ़वार लेता है। शीत ऋतु में इस पर नजर रखना बेहद जरूरी माना गया है क्योंकि यह पाला की गिरफ्त में बहुत जल्द आ जाता है। तना सूख रहा है, मतलब पाला का हमला हो चुका है।

बीज नहीं, लीजिए पौधे
वानिकी वैज्ञानिकों के मतानुसार रक्त चंदन के रोपण के लिए एक साल की उम्र वाले पौधे सही होते हैं। बीज में अंकुरण क्षमता कम होती है, इसलिए पौधे ही लिए जाएं। यह वन विभाग की नर्सरी के अलावा निजी क्षेत्र की नर्सरियों में आसानी से उपलब्ध है।

होगा तैयार 25 साल में
अच्छी बढ़वार और भरपूर कीमत के लिए रक्त चंदन के पेड़ की 25 साल की आयु बेहतर मानी गई है। इस अवधि में 18 से 20 मीटर की ऊंचाई पर पहुंच चुकी यह प्रजाति, प्रति 500 पेड़ का समूह 500 किलोग्राम लकड़ी देने में सक्षम है।

है संकटग्रस्त यह प्रजाति
संरक्षण और संवर्धन की दिशा में काम नहीं होने से रक्त चंदन को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के तहत संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची में शामिल कर लिया गया है। आई सी यू एन की रेड डाटा बुक में भी इसी श्रेणी में दर्ज किया जा चुका है।

प्रकृति का अमूल्य उपहार
प्रकृति द्वारा बहुत से बहुमूल्य उपहार हमें मिले हैं । जिनमें से एक रक्त चंदन की लकड़ी भी है । रक्त चंदन के अंदर पॉलीफेनोलिक कंपाउंड, ग्लाइकोसाइड, जरूरी तेल, फ्लेवोनोइड, टैनिन और फेनोलिक एसिड जैसे कई फाइटोकेमिकल्स होते हैं । कुल मिलाकर रक्त चंदन एक बेहद गुणकारी लकड़ी है जिसके उपयोग से कई तरह के स्किन इन्फेक्शन से छुटकारा पाया जा सकता है ।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज आफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर