नया चावल और चावल आटा में डिमांड
भाटापारा। संतुलन बना हुआ है मांग और आपूर्ति के बीच, इसलिए नया चावल और आटा दोनों 50 रुपए किलो पर स्थिर है। इधर पारंपरिक व्यंजनों को बढ़ावा देने की हो रही कोशिश के बाद चावल से बनाई जाने वाली छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की पहुंच होटल और स्वीट कॉर्नरों में तेजी से बढ़ती नजर आ रही है।
फसल कटाई और मिसाई दोनों साथ-साथ चल रही है। वह बाजार गुलजार होने लगा है, जहां नई फसल से खाद्य सामग्री बनाई जाती है। इसमें नया चावल और चावल आटा में पर्व की मांग तो है ही, इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों से की मांग निकल रही है। शहरी क्षेत्र की मांग ठीक पीछे-पीछे चल रही है।

चलन चीला का
नया चावल के आटा से बनने वाली पारंपरिक खाद्य सामग्री में चीला को हमेशा से शीर्ष पर रखा जाता रहा है। इसलिए बढ़ती मांग के पीछे इसे एक बड़ी वजह माना जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्र के बाद, पहली बार शहरी उपभोक्ताओं के बीच चावल का चीला, दोसा का बेहतर विकल्प के रूप में न केवल देखा जा रहा है बल्कि पसंद भी किया जा रहा है।

बनते हैं यह भी
पारंपरिक व्यंजनों में अपने छत्तीसगढ़ में चावल के आटा से चीला के अलावा फरा, चौंसेला, पापड़, अईरसा, बफौरी और धुस्का भी बनाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से ही इनका चलन रहा है लेकिन जिस तेजी से शहरी उपभोक्ताओं के बीच मांग निकल रही है, वह हैरत में डाल रही है, उस क्षेत्र को जो दोसा और मोमोज बेचते हैं। यह इसलिए क्योंकि इन सामग्रियों को मुकाबला करना पड़ रहा है, छत्तीसगढ़ी व्यंजन से।

गढ़ कलेवा में धूम
नया चावल के आटा से बनने वाले पारंपरिक व्यंजन की सहज उपलब्धता के लिए पहचान बना चुके, गढ़ कलेवा में जैसा बेहतर प्रतिसाद इन खाद्य सामग्रियों को मिल रहा है, उसके बाद इसकी उपलब्धता अब स्वीट कॉर्नरों और होटलों में नजर आने लगी है।पैक्ड फूड आयटम के रूप में पहली सामग्री, चावल का पापड़ बन चुकी है। जिसे गृह उद्योगों में बनाया जा रहा है।