बिलासपुर। चार दिवसीय आस्था का महापर्व छठ के दूसरे दिन खरना पूजन हुआ। मंगलवार की देर शाम व्रतियों ने खरना का प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा। शाम को गुड़, चावल, खीर बनाकर परिचितों को प्रसाद का वितरित किया।


छठपूजा के लिए तोरवा छठ घाट सजकर तैयार हो गया है। आयोजन समिति ने आकर्षक लाइटिंग और साज-सज्जा कराई है। व्रत रहने वाले महिलाओं ने घाटों, घर की छतों और अन्य जगहों पर व्रतियों ने प्रसाद के लिए गेहूं धोया। अघ्र्य के लिए ठेकुआ का प्रसाद तैयार किया जाएगा। मंगलवार की शाम व्रती छठ घाटों पर अस्तांचल गामी (डूबते) हुए सूर्य को अर्ध्य दिया। 11 नवंबर के सुबह पौ फटने के बाद लालिमा आते ही भक्त भगवान भास्कर का नमन करेंगे और अर्ध्य देंगे। 

चांवल और गुड़ से बनाया खीर

व्रत के लिए खुद को शुद्ध रखने पहले दिन लौकी और चने की सब्जी का सेवन किया। मंगलवार को छठ व्रतियों ने देर शाम अंधेरा होते ही मिट्टी के नये चूल्हे पर आम की लकड़ी से खरना का प्रसाद बनाया। यह प्रसाद छठी मैया के गीत गाते हुए ..भक्ति भाव के साथ चावल और गुड़ से बनाया गया। प्रसाद बनाया गया। फिर छठ माता की आराधना उसका ग्रहण किया। इसके बाद घर के सभी सदस्य छठ व्रती का आशीर्वाद लेते हुए गुड़ के बने प्रसाद को ग्रहण किया। गुड के बने प्रसाद के पीछे मान्यता है कि गुड़ की तासीर गर्म होती है और सर्दी के मौसम में इसका सेवन करने से अंदर के विकार निकलते हैं। इससे पूर्व सुबह महिलाओं ने स्नान कर साफ-सुथरे कपड़े पहने और नाक से माथ्ो तक सिदूर लगाकर दिनभर व्रत रखा। जिसके बाद शाम के समय गुड़ की खीर बनाकर प्रसाद तैयार कर ग्रहण किया। इस दिन व्रती महिलाएं एक समय ही भोजन करती हैं इसके पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से मन और तन दोनों शुद्ध हो जाता है। मंगलवार की शाम को खरना का प्रसाद ग्रहण करने के साथ ही 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरु कर दी, जो 1० नवंबर को डूबते सूर्य और 21 नवंबर को उगते सूर्य को अर्ध्य देने के साथ ही चार दिवसीय छठ महापर्व का समापन होगा।