कलेक्टर से मिले महापौर और समिति के प्रतिनिधि
बिलासपुर। जिले में इस बार 27 नवम्बर से राउत नाचा महोत्सव का आगाज होगा। महापौर रामशरण यादव और समिति के सदस्यों ने कलेक्टर सारांश मित्तर से मिलकर इस विषय पर चर्चा की जिसके बाद कलेक्टर ने महोत्सव की अनुमति दे दी हैं। कलेक्टर ने कहा कि शासन-प्रशासन की गाइडलाइन को ध्यान रखते हुए लाल बहादुर शास्त्री स्कूल मैदान में 44 वॉ राउत नाचा महोत्सव का आयोजन कर सकते हैं। पुलिस प्रशासन भी राउत नाचा महोत्सव के दौरान समिती का साथ देगी। दरअसल देवउठनी एकादशी के बाद अंचल में राउत नाचा का दौर शुरू हो जाता है। एक से बढ़कर एक दोहों के साथ यदुवंशी नाच का प्रदर्शन करते हैं। शहर में होने वाले राज्य स्तरीय राउत नाचा महोत्सव को लेकर महापौर रामशरण यादव , पर्यटन मंडल के अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव सहित राउत नाच महोत्सव आयोजन समिति के संयोजक कालीचरण यादव, पिछड़ा वर्ग विभाग के पूर्व अध्यक्ष कृष्ण कुमार यादव (राजू) और सदस्यों के साथ बिलासपुर कलेक्टर सारांश मित्तर से मिल कर हर साल की तरह इस साल भी राउत नाचा के आयोजन को लेकर चर्चा की। जिसके बाद कलेक्टर ने महोत्सव मनाने की स्वीकृति दी।
मुख्यमंत्री और संस्कृति मंत्री को भेजा नेवता
महापौर यादव ने बताया 44 वां राउत नाचा महोत्सव को लेकर जिला प्रशासन से सहमति मिल गई है। देवउठनी के बाद 27 नवम्बर शनिवार को लाल बहादुर शास्त्री स्कूल मैदान में राउत नाचा महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। इसमें कोरोना संक्रमण को देखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग सहित शासन के अन्य गाइडलाइन का पूरा ध्यान रखा जाएगा। साथ ही महापौर रामशरण यादव ने 44 वॉ रावत नाच महोत्सव में शामिल होने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत को नेवता दिया है।
1978 में हुई थी शुरुआत
महापौर यादव ने बताया कि साल 1978 में राउत नाचा महोत्सव की नींव दिवगंत मंत्री बीआर यादव के प्रयासों से मिला था. इसका मुख्य उद्देश्य समाज को संगठित करना था. इसमें छोटी-छोटी मंडलियां शामिल हुईं थी. समय के साथ छोटी-छोटी मंडलियों ने संगठित होकर बड़े दल का रूप लिया था. वहीं महोत्सव के रूप में इसे भव्यता साल 1985 से लाल बहादुर शास्त्री स्कूल मैदान में आयोजन कराने से मिली।
बिलासपुर के रावत नाच महोेत्सव की राज्य में अलग पहचान
महापौर रामशरण ने बताया कि बिलासपुर के रावत नाच महोेत्सव का राज्य में अलग ही पहचान बनी है. पहले आसपास के क्षेत्र से ही दल आते थे. लेकिन, जैसे-जैसे प्रसिद्धि बढ़ती गई, वैसे ही दलों की संख्या भी बढ़ती गई.