कृषि भूमि पर प्लास्टिक प्रदूषण का प्रभाव
बिलासपुर। जैविक क्रियाशीलता में 25 से 30% की गिरावट। लाभकारी जीवाणुओं की संख्या में 40 फ़ीसदी की कमी। छत्तीसगढ़ की कृषि भूमि में प्लास्टिक प्रदूषण का यह विस्तार अब धान और सब्जी फसलों में भी देखा जा रहा है।
आधुनिक कृषि तकनीक का बेतहाशा उपयोग अब परिणाम दिखाने लगा है, खराब गुणवत्ता वाली फसलों के रूप में। प्रारंभिक अनुसंधान में प्लास्टिक मल्चिंग सिस्टम, ड्रिप इरिगेशन सिस्टम, पॉलीहाउस व ग्रीनहाउस फिल्म के साथ बीज, खाद्य एवं पेय पदार्थ के विभिन्न प्लास्टिक बैग्स भी जिम्मेदार माने जा रहे हैं जिनका पुनर्चक्रण नहीं हो पाता।
घट रही उर्वराशक्ति
प्रदेश की अधिकांश भूमि लेटराइटिक, बलुई, दोमट और काली मिट्टी की है। यह पहले से ही सीमित जैविक पदार्थ से युक्त है। प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग और नियोजित प्रबंधन में लापरवाही की वजह से मिट्टी की जैविक क्रियाशीलता में 25 से 30 फ़ीसदी की कमी आई है। 40 फीसदी लाभकारी जीवाणुओं की संख्या में कमी के बाद जल धारण क्षमता में 20% की कमी दर्ज की जा चुकी है। विशेषकर धान फसल वाले क्षेत्रों में यह ज्यादा देखा जा रहा है। सब्जी फसल भी प्रभावित हो रहें हैं, खासकर टमाटर और भाजी फसलों में ज्यादा प्रभाव देखा जा रहा है।खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य खतरे में

खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य खतरे में
प्रारंभिक अनुसंधान में धान और टमाटर फसलों में माइक्रो प्लास्टिक की मौजूदगी का खुलासा हुआ है। जड़, तना में तो इसकी मात्रा मिली ही साथ ही बीज तक में माइक्रो प्लास्टिक के विषैले तत्व होने की जानकारी सामने आई है। जब यह खाद्य उत्पाद मानव भोजन के रूप में उपयोग किए जाते हैं, तो हार्मोनल असंतुलन, कैंसरजन्य प्रभाव, प्रजनन क्षमता में कमी और तंत्रिका तंत्र पर नकारात्मक असर डालता है। चिंता इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि प्रदेश की मिट्टी और खेतीहर भूमि पर माइक्रो प्लास्टिक का असर अब फसल और उत्पादन पर स्पष्ट तौर पर देखा जा रहा है।बढ़ रहा कृषि प्लास्टिक का उपयोग
बढ़ रहा कृषि प्लास्टिक का उपयोग
छत्तीसगढ़ में हर साल लगभग 4000 से 5000 टन कृषि प्लास्टिक का उपयोग होता है। इसमें प्लास्टिक मल्चिंग, ड्रिप सिंचाई टैप्स, पॉलीहाउस, ग्रीनहाउस फिल्में व बीज और उत्पादन पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक बैग्स ऐसी सामग्री है, जिनका पुनर्चक्रण मात्र 10 से 15 फ़ीसदी ही हो पाता है। शेष प्लास्टिक धीरे-धीरे टूट कर माइक्रो प्लास्टिक के रूप में परिवर्तित होकर मिट्टी में जमा हो जाता है। रोक और नियंत्रण के उपाय तो हैं लेकिन जागरूकता सिरे से गायब है।

किसानों को होना होगा जागरूक
मिट्टी की उर्वराशक्ति और जैविक क्रियाशीलता में आई गिरावट एक गंभीर संकेत है कि हमारी कृषि प्रणाली किस तरह पर्यावरणीय असंतुलन की ओर बढ़ रही है। प्लास्टिक प्रदूषण न केवल मिट्टी के सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर रहा है, बल्कि यह पूरी खाद्य श्रृंखला को विषाक्त बना रहा है। माइक्रोप्लास्टिक का जड़ों से लेकर बीज तक पहुंचना चिंताजनक है। हमें स्थायी कृषि के साथ-साथ ‘ग्रीन फार्मिंग प्रैक्टिसेज़’ और ‘बायोडिग्रेडेबल विकल्पों’ को तत्काल अपनाना होगा। साथ ही, अंतरविभागीय प्रयासों और किसानों की जागरूकता के बिना इस चुनौती का समाधान संभव नहीं है। समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए भारी संकट खड़ा हो सकता है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर