उत्पादन में गिरावट की आशंका
बिलासपुर। कालियां लग तो रहीं हैं लेकिन संख्या बेहद कम है। शीत ऋतु की जल्द विदाई और ग्रीष्म ऋतु का शीघ्र आना। जलवायु परिवर्तन का यह दौर अब महुआ को संकट में डाल चुका है। साथ उन परागणकर्ताओं का भी नहीं मिल रहा है जिन्हें पुष्पन में मददगार माना जाता है।
इस बरस महुआ के उत्पादन में जबर्दस्त गिरावट आने की आशंका है। वानिकी वैज्ञानिकों की फौरी जांच में यह खुलासा हुआ है कि औसत तापमान बढ़ा हुआ है। ऐसे में महुआ में कलियों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है। यह स्थिति वनोपज पर निर्भर वनवासियों को गंभीर आर्थिक संकट में डाल सकती है।

प्रभावित हो रही पुष्पन क्षमता
औसत वार्षिक तापमान में बढ़त, कमजोर पुष्पन की सबसे बड़ी वजह मानी जा रही है। देर से ठंड और जल्द गर्मी दूसरी वजह है। असमय वर्षा फूलों के विकास को प्रभावित किए हुए हैं। अत्यधिक वनस्पति दोहन और रासायनिक उर्वरक व कीट नाशकों का बेहिसाब उपयोग महुआ के लिए पहले से ही घातक माना जा चुका है। यह प्रमुख ऐसे कारक हैं, जो महुआ के पुष्पन चक्र को प्रभावित कर चुके हैं।

बढ़ रहा हस्तक्षेप
शहरीकरण को प्राथमिकता देने वाली योजनाएं, भूमि उपयोग में बदलाव, प्राकृतिक पौधों की जगह वाणिज्यिक पौधारोपण को बढ़ावा। जल संचयन क्षेत्र का सिमटता दायरा, भूजल स्त्रोत की गिरावट के बाद सूखते महुआ पेड़, प्रमाण है कि मानवजनित हस्तक्षेप की वजह से संकट में आ चुके हैं महुआ के वृक्ष। इसके अलावा जंगलों की कटाई और औद्योगिकीकरण पहले से ही महुआ के विनाश का रास्ता खोले हुए हैं।

दे रहे यह सुझाव
महुआ के पुष्पन चक्र की कमजोर स्थिति को देखते हुए ऐसी शासकीय नीतियों को कारगर माना गया है, जो संरक्षण और संवर्धन के लिए मददगार बन सकते हैं। इनमें उन्नत और जलवायु अनुकूल सहिष्णु प्रजातियों पर शोध मुख्य हैं। इसके अलावा जलवायु अनुकूल प्रबंधन भी यह समस्या दूर कर सकता है। इसके तहत सूखारोधी तकनीक के जरिए जल संचयन संरचना का निर्माण करवाना होगा ताकि सूखे दिनों में महुआ को मानक मात्रा में नमी मिलती रहे।

मानव हस्तक्षेप मुख्य कारण
छत्तीसगढ़ के जंगलों में महुआ वृक्ष में पुष्पन की कमी का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन, मिट्टी की गिरती गुणवत्ता, अत्यधिक वनोपयोग और परागण में बाधा है। अनियमित वर्षा और बढ़ता तापमान पुष्पन को प्रभावित कर रहे हैं। पोषक तत्वों की कमी और मानव हस्तक्षेप वृक्षों की प्राकृतिक वृद्धि को बाधित कर रहे हैं। साथ ही, परागणकर्ताओं की घटती संख्या और महुआ फूलों का अति दोहन भी इस समस्या को बढ़ा रहा है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर