बिलासपुर। अटकी सांस अब जाकर लय पर आ रही है। कसक बस इतनी रह गई कि यदि समय पर मानसून आ जाता, तो शेष 25 फीसदी भी निकल जाता।
तिरपाल की मांग लगभग पूर्णता की ओर है। मांग, सबसे निचले स्तर पर आता देखकर अब वापस भंडारगृहों तक पहुंचाए जाने लगे हैं। प्लास्टिक पर सख्ती वैसे भी तीन साल से हलाकान किए हुए है। उस पर इस बरस विलंब से मानसून का आना कमजोर कर गया तिरपाल बाजार को। राहत इस बात की है कि बिग साइज वाले तिरपाल की मांग जोरदार बढ़ी।
साल-दर- साल
प्लास्टिक पर सख्ती, अनियमित मानसून और ग्रामीण क्षेत्रों में पक्के आवास देने की योजना। यह तीन ऐसे प्रमुख कारण माने जा रहे हैं, जिसकी वजह से तिरपाल की मांग साल- दर- साल घटते क्रम पर है। हालांकि निर्माण कंपनियों ने कीमत स्थिर रखकर गिरती मांग को बनाए रखने की पूरी कोशिश की लेकिन यह सफल नहीं रही। उस पर इस वर्ष विलंब से पहुंचे मानसून ने तगड़ा झटका दिया तिरपाल को।
बड़े तिरपाल ने दिया सहारा
वेस्ट ट्रांसपोर्टिंग वाहनें तो नहीं लेकिन ट्रैक्टर, छोटी मालवाहक गाड़ियां और हाईवा मालिकों की खरीदी से गिरते तिरपाल बाजार को बड़ा सहारा मिला। तिरपाल की स्थिर कीमतों ने भी मदद की। 180 से 12000 रुपए जैसी कीमत वाले तिरपाल की बिक्री होलसेल और रिटेल मार्केट को जीवन देने वाली मानी जा रही है। कसक इसी बात की है कि अपेक्षा अनुसार मांग नहीं निकल रही है।
विदा ले रहा सीजन
तिरपाल का सीजन अंतिम दौर में आ चुका है। तेजी से घटती मांग को ध्यान में रखते हुए अब बचा हुआ तिरपाल भंडार गृहों में वापसी की तैयारी संस्थानेंं कर रहीं हैं। अब ध्यान उस ग्रीन नेट पर है जिसकी मांग पूरे साल रहती है। संस्थानों को भरोसा है कि बचे तिरपाल से संभावित नुकसान की भरपाई ग्रीन नेट की बिक्री से पूरी की जा सकेगी।