होगा पर्यावरण संरक्षण, बढ़ेगा वनोपज संग्रहण
बिलासपुर। वनोपज संग्रहण। प्रारंभिक तैयारियां के बीच ग्रीन नेट जैसा व्हाइट नेट भी खरीद सकेंगे संग्राहक। आसान क्रय शक्ति के साथ कॉटन और पॉलिएस्टर का भी विकल्प होगा इसमें। कुल जमा-सार यह कि नया उपाय, जैव विविधता को नष्ट होने में प्रभावी रोक लगा सकता है क्योंकि संग्रहण का काम बेहद सुरक्षित और आसान होगा।
दिन आने वाले हैं महुआ के। पहली बार पर्यावरण संरक्षण को लेकर देश स्तर पर जैसी चिंता देखी जा रही है, उसमें महुआ संग्रहण के पारंपरिक तौर-तरीके को भी बड़ी वजह माना जा रहा है क्योंकि महुआ संग्रहण के पूर्व, गिरे हुए सूखे पत्तों को जला दिया जाता है। इसमें महुआ की फूड ग्रेड क्वालिटी तो खत्म होती ही है, साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी प्रभावित होती है। नए वन तैयार करने में इस तरीके को बेहद खतरनाक माना जाता है। अब बड़ी चिंता खत्म होने की राह में तैयार हो रही है क्योंकि नेट के जरिए संग्रहण का चलन तेजी से बढ़ रहा है।

अब व्हाइट नेट
ग्रीन नेट। सब्जी और फूलों की खेती करने वाली जगह पर भी दिखाई देता है। पहली बार विकल्प के रूप में व्हाइट नेट भी संग्राहकों और किसानों के सामने होगा। प्लास्टिक और कॉटन जैसी सुविधा इसमें दी जा रही है। कीमत मात्र 20 से 40 रुपए मीटर बताई जा रही है जबकि ग्रीन नेट की रेंज 40 रुपए मीटर से शुरू होती है। अंत में प्रति मीटर 160 रुपए तक है। अब चयन किसानों और संग्राहकों को करना होगा।

पर्यावरण संरक्षण ऐसे
वन उपज माने जाने वाले फूल और फलों के संग्रहण के पूर्व सूखी पत्तियों और टहनियां में आग लगाई जाती है। यह तौर- तरीका जैव विविधता पर संकट बना हुआ है। मिट्टी के सूक्ष्म पोषक तत्व तो खत्म होते ही हैं, साथ ही प्राकृतिक रूप से तैयार होने वाले पौधों के लिए अनुकूल साथ भी नहीं मिलता है। यह गतिविधियां नए वन तैयार करने में भी बाधा बनी हुई है। इसके साथ जंगल में रहने वाले पशु- पक्षियों के लिए आहार की उपलब्धता को भी खत्म करती है।

बढ़ेगी फूड ग्रेड क्वालिटी
ग्रीन नेट और व्हाइट नेट। महुआ संग्राहकों को सबसे ज्यादा फायदा होगा। नेट कलेक्शन के माध्यम से एकत्रित महुआ की मात्रा न केवल बढ़ाई जा सकेगी बल्कि बाजार की मांग भी पूरी की जा सकेगी। दोनों ही स्थितियों में सीधा लाभ महुआ संग्राहकों को होगा। बताते चलें कि 2023- 24 में प्रदेश में संग्रहित 694.94 क्विंटल महुआ में फूड ग्रेड महुआ की हिस्सेदारी 503.65 क्विंटल की थी। इस बरस मात्रा बढ़ने का अनुमान इसलिए है क्योंकि मौसम महुआ के साथ है और समर्थन मूल्य पर महुआ फूल की खरीदी दर भी बढ़ी हुई है।

बनी रहती है गुणवत्ता
महुआ के फूलों को एकत्र करने के लिए गिरे पत्तों में ग्रामीण आग लगा देते हैं। महुआ के फूल पेड़ से नीचे गिरते ही राख एवं धूल के संपर्क में आकर गंदे हो जाते हैं। महुआ संग्रहण के कारण लगने वाली जंगल की आग न सिर्फ जैव विविधता को नष्ट करती है बल्कि वन्य जीवों के लिए भी खतरा बनती है। जाल में फूलों को एकत्र करने से गुणवत्ता बनी रहती है जिसे बेचने पर ज्यादा मुनाफा प्राप्त होता है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर