लोकल फसल कमजोर, इंपोर्टेड तेज


बढ़ती कीमतों से बाजार में मांग घटी


बिलासपुर। देश की फसल कमजोर। आयातित में भारी तेजी। विवशता है दाल का उत्पादन रोकना। संकट गहराता देखकर नियमित संचालन से हाथ खींच रहीं हैं दाल मिलें। हिम्मत तब करते, जब स्थानीय मांग बनी रहती, लेकिन यह भी घट रही है।

छत्तीसगढ़ की कई दाल मिलों के लिए संचालन रोकने का फैसला बेहद दुखद माना जा रहा है। देश में मांग के अनुरूप फसल का नहीं होना और आयातित सामग्री की कीमत, क्रय शक्ति से बाहर होने के बाद नया फैसला दूरगामी असर डालेगा, यह तय माना जा रहा है। स्थानीय बाजार में दलहन की सभी किस्मों की दरें बढ़ने लगीं हैं। अरहर दाल का नाम इसलिए प्रमुखता से सामने आ रहा है क्योंकि यह 130 रुपए किलो की ऊंचाई पर पहुंच चुकी है। आसार आगे भी तेजी के बने हुए हैं।

इसलिए संचालन से बाहर

छत्तीसगढ़ में 80 से 100 यूनिटों में दलहन का उत्पादन होता है। जरूरत के मुताबिक कच्चे माल की उपलब्धता नहीं होने से, एक-एक करके यह मिलें संचालन से बाहर हो रहीं हैं। घरेलू फसल की ही तरह प्रमुख दलहन उत्पादक राज्य महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी फसल बेहद कमजोर है।

महंगा है आयात

तंजानिया और म्यांमार के रास्ते खुले हुए हैं, आयातित दलहन के लिए लेकिन दरें इतनी ऊंची हैं कि बाजार पहुंचने के बाद उपभोक्ता मांग में झटके से गिरावट आएगी। बताते चलें कि अरहर दाल की खुदरा कीमत 130 रुपए किलो पर पहुंच गई हैं। यह कीमत दाल को भोजन की थाली से दूर कर रही है।

हर कोशिश असफल

काम के घंटे कम किए। नहीं दूर हुई परेशानी। संचालन के दिन घटाए गए। यह भी काम नहीं आया। संकट गहराता जा रहा है। अंतिम उपाय था, संचालन का रोका जाना। पीड़ादायक था यह फैसला लेकिन बेहद विवशता में इसे स्वीकार कर रहीं हैं दाल मिलें। अंधकार में हैं, दलहन मिलों का भविष्य।

स्थितियां गंभीर

इंपोर्टेड दलहन में कीमत जानबूझकर बढ़ाई जा रही है। बड़े उद्योगपतियों को स्टॉकिस्टों का भी साथ मिल रहा है। इस काम में वे भी खुलकर सहयोग कर रहे हैं जो व्हाट्सएप मैसेज के जरिए नए भाव की जानकारी संबंधितों तक पहुंचाते हैं। यही वजह है कि संचालन में परेशानी बढ़ रही है।
– नरेश आर्य, अध्यक्ष, दाल मिल एसोसिएशन, भाटापारा