सरोकार की खबर पर जागा प्रशासन

जिला अस्पताल बिलासपुर में शिशुरोग विशेषज्ञ ने की जांच

रतनपुर। बिलासपुर स्थित जिला अस्पताल में शिशु रोग विशेषज्ञ ने जांच कर खुलासा किया है कि गुंडल को दिल से संबंधित बीमारी है। इसके साथ ही वह सेरेब्रल पाल्सी से भी पीड़ित है। प्रशासन उसके बेहतर इलाज के लिए हर संभव प्रयास करेगा।


स्वास्थ्य विभाग का एम्बुलेंस लेकर चिरायु टीम में शामिल कोटा के डॉ. तिलक और डॉ. माया सागर मंगलवार की सुबह गुंडल के घर पहुंचे। दादी के साथ उसे जिला चिकित्सालय बिलासपुर लेकर गए। जहाँ जिला शीघ्र हस्तक्षेप केन्द्र में शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. प्रेमांकुर गुप्ता ने उसके स्वास्थ्य की जांच की। जांच में खुलासा हुआ कि गुंडल को सेरेब्रल पाल्सी नाम की बीमारी है। इससे पीड़ित मरीजों को चलने-फिरने, बैठने में तकलीफ होती है। बच्चा मानसिक रूप से विक्षित्त और कुपोषित होता है। जांच में बच्चे को दिल से संबंधित बीमारी होने का भी पता चला है । जिसके बेहतर इलाज के लिए भी प्रशासन की ओर से व्यवस्था की गई है। जांच के दौरान आर.बी.एस.के नोडल डॉ. सौरभ शर्मा व डी.ई.आई.सी टीम में शामिल डॉ. अभिषेक बिबे भी मौजूद रहे।

गौरतलब हो कि नया साल के पहले दिन *thecentralnews.in* ने मासूम दिव्यांग गुंडल के अनकही दर्द की मार्मिक कहनी *आवाजों के बाज़ारों में खामोशी पहचाने कौन….* शीर्षक से पाठकों तक पहुंचाई है. इसके दूसरे ही दिन सोमवार को इस पर सकारात्मक पहल भी शुरू हुआ. स्वास्थ्य अमले ने उसके घर पर जाकर गुंडल के दिल की आवाज सुनी और दादी से चर्चा कर जरूरी जानकारी हासिल की. मंगलवार की सुबह चिरायु की टीम उसके घर पहुंची. जांच व बेहतर इलाज के लिए गुंडल को बिलासपुर जिला अस्पताल लेकर गई. *आवाजों के बाज़ारों में खामोशी पहचाने कौन….* शीर्षक से प्रकाशित खबर में हमने बताया कि नौ महीने पेट में रख कर अपने खून से सींचने वाली माँ भी कलेजे के टुकड़े की इस हालत को नियति समझ कर पति के साथ बे फिक्र कमाने खाने ईंट भट्ठे में काम करने लखनऊ उत्तर प्रदेश चली गई है. बुजुर्ग दादी अपने दूसरे नाती-पोतों के साथ ही बियाबान में इसकी परवरिश कर रही है. परवरिश बोले तो भगवान के भरोसे… धरती माँ की गोद में… धूल-मिट्टी, ओढना-बिछौना है.

बुजुर्ग दादी को अपने इस दिव्यांग पोते का नाम भी नहीं मालूम. नाम पूछा तो अगल-बगल झांकने लगी. पास बैठे पोते-पोतियों से पूछा तो उन्होनें बताया गुंडल है इसका नाम. उम्र चार साल. माँ-बाप के बारे में पूछने पर बताया उसके बाप का नाम दिनेश गंधर्व और माँ का नाम जयंती है. तीन भाई बहनों में बीच का है गुंडल. जन्म के बाद बढ़ती उम्र के साथ उसका शरीर विकसित नहीं हो पाया. जिसके चलते अपने पैरों पर खड़ा होना तो दूर, बैठ भी नहीं पाता. दूसरों की बातों को समझ तो लेता है पर बोल नहीं पाता. जमीन पर हमेशा लेटे रहना और जिंदा होने को जताने शरीर को हरकत देकर सरकते रहना ही उसकी नियति है. दिनचर्या की क्रिया कलापों के लिए भी उसे दूसरे के आसरे की जरूरत पड़ती है. हाथ और दोनों पैर हरकत करते हैं जो उसे सरकने में मदद करते है. दादी के मुताबिक उसके दिल में छेद भी है, बेटे-बहू ने उसका खूब इलाज कराया रायपुर तक इलाज कराने के लिए लेकर गए. लेकिन कहीं से भी कोई उम्मीद की किरण नजर नहीं आई.

दादी के आसरे छोड़ मां-बाप गए कमाने-खाने

गुंडल अब करीब चार साल का हो गया है उसके भाई-बहन ठीक ठाक है, छोटी बहन तो दौड़ लगा लेती है. दादी के मुताबिक वे अनुसूचित जाति से है. पुरखों की पूंजी जमीन-जायदाद तो है नहीं, जिससे आय हो और परिवार का भरण-पोषण हो. परिवार पालने काम तो करना ही होगा न. बच्चों को उसके पास छोड़कर बेटे-बहू कमाने-खाने ईंट भट्ठे में काम करने लखनऊ चले गए हैं. सरकारी राशन दुकान से उसे पैतीस किलो चावल मिलता है इसी से उसका और बच्चों के खाने पीने की व्यवस्था हो जाती है. आबादी से दूर बियाबान में मल्ली तालाब के पार पर झोपड़ी बनाकर रहने के सवाल दादी कहती है. उनका घर वार्ड क्रमांक 11 भाटापारा दर्रीपारा में है. खेतों और बाड़ी की रखवाली का काम मिलने की वजह से वे बच्चों के साथ यहाँ रहती है.