छोड़ गए बालम हमें हाय अकेला छोड़ गए …


बिलासपुर। छोड़ गए बालम हमें हाय अकेला छोड़ गए : जीवनभर कौन साथ निभाता है? लेकिन कोई इस तरह भी तो नहीं जाता है। कल अमावस्या थी आज वन्य प्राणी जीवन दिवस है और यही दिन चुना था रजनी में जाने के लिए रजनी अर्थात बाघिन जो अचानकमार के जंगल से रेस्क्यू कर लाई गई थी कानन पेंडारी में “पेण्डारियों” के बीच। उसे क्या पता था कि वह जा रही है, “पेण्डारियों” के बीच ।रजनी चली गई । कल ही हमने कहा था- यह चला -चली की बेला है; रजनी जा सकती है। और रजनी चली गई। अब खबर यह भी है कि रजनी ना जाए कह कर ₹ 800000 लोगों ने उसके इलाज में खर्च डालें । रजनी फिर भी चली गई। ऐसा ही है- कबीर दास जी कहते हैं— “दस द्वारे का पिंजरा ता में पंछी मौन, रहे तो अचरज है ,उड़े तो अचरज कौन । 8 नहीं 28 लगाओ जाने वाले को कौन रोक पाया है ?जो जाना चाहेगा उसे कौन रोक पाएगा? रजनी बाघिन है और बाघिन तो बाघ से भी तेज होती है। आज विश्व वन्य प्राणी दिवस है और कल अमावस्या थी । कहते हैं- एकादशी और अमावस्या को जिसकी मृत्यु होती है उसे सीधे स्वर्ग मिलता है इस हिसाब से अमावस्या के दिन प्रयाण करने वाली रजनी बाघिन को स्वर्ग में स्थान मिलेगा, परंतु उसके नाम पर रोटी तोड़ने वाले लोगों का क्या होगा ? उन्हें कौन कहेगा- “तेरा क्या होगा कालिया ?” इनके लिए तो वन्य प्राणी हैं -सिर्फ नोट । लेकिन एक वन्य प्राणी का जाना पूरे वातावरण को कैसे प्रभावित करता है यह ये लोग क्या जानेंगे ? कहा भी है- एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू? एक जान की कीमत यह क्या जानेंगे ? “लोग आते हैं, लोग जाते हैं, हम वहीं पर खड़े रह जाते हैं।” अबकी बार किसकी बारी है ? हिप्पोपोटामस, कालू भालू , आएंगे और जाएंगे। लेकिन उनके नाम पर मलाई चाटने वाले मलाई चाटेंगे, गाएंगे, गुनगुनाएंगे। उन्हें क्या फर्क पड़ता है? आज रजनी गई, कल रंजना जाएगा और परसों मंजना चला जाएगा ।इनके लिए तो आवाजाही खेल खिलौना है। यह यम के दूत हैं! इन्हें इन बातों से क्या लेना-देना। ज्यादा होने पर कह देते हैं- हम तो अपनी ड्यूटी कर रहे हैं । इससे ज्यादा अब क्या बोलें ।बहरहाल अमावस्या के दिन, विश्व वन्य प्राणी दिवस के दिन गई बाघिन रजनी को वन्य जीव प्रेमियों की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि। जय हो, सदा विजय हो । जय जय।

साभार बैम्बू पोस्ट डाट काम