मांग में आई 200 बोरा की गिरावट

संकट में प्रदेश की निर्माण इकाईयां

बिलासपुर। नड्डा की मौजूदगी कम होती दिखाई देती है। यह इसलिए क्योंकि इसे तेल का पूरा साथ नहीं मिल रहा है। असर इतना ज्यादा कि रोजाना अनुमानित 500 बोरा की मात्रा में बिकने वाला नड्डा अब 300 बोरा पर आ गया है। गिरावट का यह क्रम फिलहाल तो थमता दिखाई नहीं देता क्योंकि तेल की कीमत रोज बढ़ रही है।

नड्डा मुरकू, आलू नड्डा और नड्डा भेल, शहर की हर गली, मोहल्ला और सड़क पर लगने वाले ठेलों में दिखाई देता है। चलन और सेवन इतना बढ़ा हुआ है कि शाम के समय तो इनकी संख्या हैरत में डालने लगी है लेकिन बच्चे ही नहीं, बड़ों के बीच भी लोकप्रिय, नड्डा की सांस अटक-अटक कर चल रही है क्योंकि जिस खाद्य तेल की मदद से यह उपभोक्ता तक पहुंचता है, उसकी कीमत अब 2400 सौ रुपए टीन पर पहुंच गई है। इसलिए नड्डा की बिक्री का बढ़ता आंकड़ा अब गिरावट की राह पकड़ चुका है। ऐसे में बिलासपुर और बलौदा बाजार की निर्माण इकाइयां संकट में आने लगीं हैं।


टूट 200 रुपए की

मैदा से बनने वाला नड्डा की वर्तमान स्थिति को दयनीय ही कहा जा सकता है क्योंकि बाजार में उसकी हिस्सेदारी लगातार कम हो रही है। यह इसलिए क्योंकि उपभोक्ता के हाथ तक पहुंचने में मदद करने वाला खाद्य तेल क्रय शक्ति से बाहर हो चला है। प्रति टीन 2400 रुपए पर पहुंच चुका खाद्य तेल में आई वृद्धि के पहले जो नड्डा 4000 रुपए क्विंटल पर चल रहा था। वह 200 रुपए की टूट के बाद 3800 रुपए क्विंटल पर आ चुका है ।यदि खाद्य तेल की कीमत इसी तरह बढ़ती रही तो, नड्डा की कीमत में और गिरावट की आशंका है।


अब 300 बोरा

सितंबर से जून तक 10 माह तक का समय नड्डा के लिए सीजन का माना जाता है। याने चल रहा महीना मांग का महीना है लेकिन खाद्य तेल की बढ़त ले रही कीमत से, प्रदेश में नड्डा की रोज की अनुमानित खपत 300 बोरा पर आ गई है। तेल में आई वृद्धि के पहले तक यह आंकड़ा लगभग 500 बोरा रोज था, याने खपत में 200 बोरा की टूट आ चुकी है। खाद्य तेलों में तेजी थमने तक गिरावट का यह आंकड़ा और बढ़ने की आशंका है।


बनते हैं यह

हर उम्र और वर्ग के बीच पसंद किया जाने वाला नड्डा सादा भी खाया जाता है लेकिन आलू नड्डा, मुरकू, मसाला नड्डा विशेष तौर पर पसंद किया जाता है। शहर ही नहीं, गांव- देहात तक में भी समान रूप से लोकप्रिय नड्डा, अब खाद्य तेलों की गर्मी में झुलस रहा है। दूसरे उद्योग धंधों की तरह, यह छोटा सा उद्योग भी इंतजार कर रहा है अच्छे दिन का।