भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर ने सौंपी इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को जिम्मेदारी
सतीश अग्रवाल
बिलासपुर। प्रदेश के जंगलों और मैदानी क्षेत्रों में मिलने वाले मामफल, केऊकंद, तिखुर और चरोटा सहित दस पौधों पर अनुसंधान होगा। भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान मुंबई ने इसकी जिम्मेदारी इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर को सौंपी है। अनुसंधान रिपोर्ट मिलने के बाद इन प्रजातियों का प्रमाणीकरण किया जाएगा ताकि भविष्य में इसकी व्यावसायिक खेती की जा सके।
औषधीय पौधों के लिए अपना छत्तीसगढ़ अब तेजी से देश और विदेश में पहचान बना रहा है। इस पहचान को अब और ज्यादा विस्तार मिलने जा रही है। भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान मुंबई ने प्रदेश के जंगल और मैदानी इलाके में भरपूर मात्रा में मिलने वाली दस ऐसी प्रजातियों की पहचान की है जिनमें कई तरह के महत्वपूर्ण औषधीय एवं रासायनिक तत्वों के होने की जानकारी मिली है। इसे प्रमाणित करने के लिए संस्थान ने इन दस प्रजातियों को रिसर्च के दायरे में लिया है। संस्थान की ओर से रिसर्च की जिम्मेदारी इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर को सौंपी गई है।
इन पर होगा अनुसंधान
प्रदेश के बस्तर, सरगुजा और मैदानी क्षेत्रों में मिलने वाले मामफल, बच, केऊकंद, चरोटा, काली मूसली,तिखुर और कालमेघ सहित दस पौधों पर अनुसंधान की योजना तैयार हो चुकी है। इनमें से कुछ प्रजातियां आदिवासी क्षेत्रों में उपयोग में लाई जा रही है तो कुछ की पहुंच, विदेशों तक है। अनुसंधान में सफलता के बाद इनकी व्यवसायिक खेती की राह खुल सकती है।
रिसर्च में इस पर ध्यान
अनुसंधान में यह जानकारी ली जाएगी कि किस पौधे का, कौन सा हिस्सा औषधीय गुणों के लिहाज से उपयुक्त है। परंपरागत ज्ञान के आधार पर वैद्य किस हिस्से को सही मानते हैं ? इसके अलावा यह भी पता लगाया जाएगा कि इनकी वजह से रासायनिक तत्व में क्या बदलाव लाया जा सकता है ? यह भी देखा जाएगा कि किस क्षेत्र के किन पौधों में औषधीय रूप से महत्वपूर्ण रासायनिक तत्व अधिक होते हैं। इसमें जलवायविक परिस्थिति पर विशेष ध्यान रहेगा क्योंकि आगे चलकर विश्लेषण के बाद पौधों के प्रमाणीकरण के लिए यही खोज आधार बनेगी।
कमान इनके हाथों में
भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान मुंबई की ओर से संस्थान के डॉ. ए. के. बौरी को जिम्मेदारी सौंपी गई है। इनके मार्गदर्शन में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रमुख अन्वेषक डॉ एस. एस. टुटेजा की टीम यह काम करेगी। टीम में सह-अन्वेषक के रूप में डॉ. एस. एल. स्वामी और डॉ. धर्मेंद्र खोखर होंगे। मालूम हो कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के सगंध पौधे एवं अकाष्ठीय वनोपज उत्कृष्टता केंद्र में औषधीय पौधों पर अनुसंधान होता है। इस समय केंद्र में 200 किस्म के औषधीय एवं सगंध पौधे लगाए गए हैं।
10 प्रजातियों पर अनुसंधान
प्रदेश के बस्तर ,सरगुजा और मैदानी इलाके में मिलने वाली औषधिय पौधों में से 10 प्रजातियों पर अनुसंधान होगा। इनमें यह पता लगाया जाएगा कि किस पौधे का कौन सा हिस्सा महत्वपूर्ण गुण रखता है। इसके अलावा नए गुण और तत्वों की पहचान की जाएगी।
- डॉ एस. एस. टुटेजा, प्रमुख वैज्ञानिक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑन एनटीएफपी एंड मैप्स, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर