गुणवत्ता भी है प्रभावित


भाटापारा। फरवरी में पानी का छूटा साथ अब असर दिखा रहा है, गेहूं, तिवरा, बटरी और चना की कमजोर आवक और तेज कीमत के रूप में। मंदी की तो नहीं लेकिन चल रही तेजी दीर्घकाल तक बने रहने की आशंका है।

कमजोर फसल और कमजोर आवक की आशंका अब सही साबित होने लगी है। रबी  सत्र में ली जाने वाली दलहन और तिलहन की लगभग सभी किस्में गिर चुके भूजल भंडार की वजह से किसानों को निराश कर चुकीं हैं। घरेलू जरूरतें पूरी करने के लायक भंडारण करने के बाद शेष उपज की कीमत तेज तो मिल रही है लेकिन गुणवत्ता इस तेजी की राह में बाधा बनी हुई है।

कमजोर आवक, कमजोर गुणवत्ता

बालियों में दाने लगने के दौरान भूजल भंडार से संकेत मिलना चालू हो चुका था कि साथ नहीं दे पाएंगे। जैसे-तैसे जरूरी उपाय तो किए गए लेकिन काम नहीं आए यह उपाय। कमजोर उत्पादन की आशंका तो थी लेकिन गुणवत्ता भी खराब  होगी इसका अनुमान जरा कम ही था। अब फसल सामने है। सामान्य दर्जे का गेहूं 2500 से 2700 रुपए क्विंटल और बेहतर गेहूं में सौदे 2800 रुपए क्विंटल पर हो रहे हैं।

मजबूत दलहन

बेहतर मांग है चना दाल में लेकिन लोकल फसल कमजोर थी। इसलिए चना 5500 से 5800 रुपए क्विंटल जैसी कीमत पर मजबूत है। सीजन की डिमांड का दबाव अरहर पर भी है, इसलिए इसमें सौदे 7500 रुपए क्विंटल जैसी उच्च कीमत पर हो रहे हैं। गर्म वह बटरी और तिवरा भी है, जिसने चालू बरस की शुरुआती दिनों से ही बढ़त बनाई हुई है। 4400 से 4900 रुपए क्विंटल की कीमत के साथ बटरी ने और 4000 से 4200 रुपए क्विंटल के साथ तिवरा ने आगे भी मजबूती का संकेत दिया हुआ है।

दोनों एक समान

साल-दर-साल बढ़ती कीमत को देखकर किसानों ने सरसों की खेती का रकबा बढ़ाया हुआ है। इसके बावजूद मांग की तुलना में आवक लगभग आधी ही है। इसलिए इसमें सौदे 5400 से 5500 रुपए क्विंटल पर हो रहे हैं। ऐसी ही स्थिति अलसी में भी बनी हुई है। तेल उत्पादन करने वाली इकाइयों की मांग से यह  5400 से 5500 रुपए क्विंटल पर पहुंचकर आगे और भी तेजी का संकेत दे रहा है।