भाटापारा। बहुत हुआ, अब बस करें। नहीं दे पाएंगे साथ..। कह रहा है भूजल, पोहा  प्रसंस्करण इकाइयों से। पानी की पतली होती धार के रूप में संकेत भी मिलने के साथ लगे हैं।

जून मध्य में आती थी ऐसी स्थिति लेकिन यह पहला मौका है, जब मार्च मध्य में ही जल भंडार साथ छोड़ने की बात कह रहा है। चिंता की लकीरें इसलिए विस्तार ले रहीं हैं क्योंकि मानसून के लिए पूरे तीन माह शेष हैं। ऐसे में पानी की जरूरतें कैसी पूरी की जा सकेगी क्योंकि पोहा उत्पादन में अनिवार्य है पर्याप्त पानी का होना।

40 फ़ीसदी कम हुई आपूर्ति

सभी इकाइयों के पास है अपने जल भंडार। मार्च के पहले सप्ताह तक तो सामान्य बना रहा जल प्रवाह लेकिन दूसरे सप्ताह इसमें हल्की गिरावट देखी गई लिहाजा कुछ घंटे अंतराल बाद पंप चलाया गया। अब यह प्रयास भी काम नहीं आ रहे हैं क्योंकि मांग के अनुपात में 60 फीसदी पानी ही मिल पा रहा हैं। ऐसे में शेष 40 फ़ीसदी के लिए उपाय खोजे जा रहे हैं।

कर रहे इस पर विचार

भूजल की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता के लिए अब ईकाइयां वाटर हार्वेस्टिंग और आपात स्थितियों के लिए परिसर में लघु जलाशय के अलावा टैंक निर्माण की योजना पर विचार कर रहीं हैं। इसमें गंभीरता इसलिए नजर आ रही है क्योंकि गहराई बढ़ाने के बावजूद पानी की उपलब्धता संतोषजनक नहीं है। इसलिए बहुत जल्द फैसला करना होगा क्योंकि भूजल भंडार तेजी से घट रहा है।

इंतजार अच्छे दिन का

मानसून के लिए पूरे ढाई माह इंतजार करना होगा। इस बीच सीमित विकल्प पर विचार तो किया ही जा रहा है, साथ ही भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के पूर्वानुमानों पर भी नजर रखी हुईं हैं पोहा प्रसंस्करण इकाइयां क्योंकि इससे ही भविष्य की राह तय की जा सकेगी‌।

40 फ़ीसदी गिरावट

वाटर लेवल तेजी से घट रहा है। मांग के अनुपात में महज 60 फीसदी आपूर्ति से संचालन में दिक्कत आने लगी है। संकट से निपटने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग और कृत्रिम जल भंडार निर्माण जैसे उपाय पर काम करने की योजना बना रहे हैं।
रंजीत दावानी, अध्यक्ष, पोहा मुरमुरा निर्माता कल्याण समिति, भाटापारा