घरेलू बाजार भी मांग शून्य
बिलासपुर। निर्यात शून्य। घरेलू बाजार में ताला। पहली बार बन रही इस स्थिति को देखकर, इस साल नए बेर की खरीदी से हाथ खींच रहें हैं निर्यातक। हालत इतनी खराब है कि 700 रुपए क्विंटल जैसी कीमत पर भी सौदे नहीं हो पा रहे हैं।
वनोपज के बाजार में पहली बार, बेर की खरीदी पूरी तरह से बंद है। सीजन, बीच की अवधि में प्रवेश कर चुका है लेकिन खरीदी से निर्यातकों का इंकार बेर संग्राहकों को बेहद हताश कर रहा है। वैसे इस साल संग्राहकों की संख्या अपेक्षाकृत काफी कम है क्योंकि संग्रहण क्षेत्र को पूर्व में ही सूचित किया जा चुका था कि नई फसल की खरीदी इस बरस संभव नहीं है।

निर्यात इस बरस भी बंद
बांग्लादेश। एक मात्र ऐसा देश, जो भारत के छत्तीसगढ़ से बेर की खरीदी करता था। बेर का अचार बनाने में उपयोग करने वाले इस देश के लिए सरकार ने निर्यात का द्वार लगातार दूसरे बरस भी बंद रखा हुआ है। ऐसे में बीते साल की संग्रहित उपज की पूरी मात्रा कोल्ड स्टोरेज में रखी हुई है। निर्यातक पुरजोर कोशिश कर रहे हैं कि निर्यात की अनुमति मिल जाए ताकि पुराने भंडारण का निपटान हो सके और लगाई गई पूंजी की वापसी की राह आसान हो। सफलता नजर नहीं आ रही है।

रुझान नहीं दिखा रहा राजस्थान
छत्तीसगढ़ के बेर का दूसरा बड़ा उपभोक्ता है राजस्थान। लेकिन इसने दूसरे बरस भी खरीदी से दूरी बनाए रखी है। खटाई के लिए बेर की थोक खरीदी करने वाले राजस्थान से वार्ता का दौर जारी है लेकिन रुझान नहीं दिखा रहा है राजस्थान। स्पष्ट कारण अब तक सामने नहीं आने से प्रदेश के बेर निर्यातक अब हताश होने लगे हैं। घरेलू बाजार से भी मदद की उम्मीद नहीं है।

जमीन पर भाव
पूरी तरह प्रतिकूल स्थितियों के बीच चल रही इस वनोपज में भाव अब जमीन पर आ चुके हैं। 700 रुपए क्विंटल जैसी सबसे निचली कीमत पर भी बेर को निर्यातक और बाजार नहीं मिल रहे है क्योंकि खरीदी पूरी तरह से बंद है। राहत केवल इतनी ही है कि पूर्व में दी गई सूचना के बाद इस बार काफी कम मात्रा में संग्रहण हो रहा है।
बेहद खराब दौर
निर्यात पूरी तरह बंद है। राजस्थान भी खरीदी को लेकर रुझान नहीं दिखा रहा है। घरेलू मांग वैसे भी नहीं है। इसलिए इस साल बेर की खरीदी नहीं कर रहे हैं।
– सुभाष अग्रवाल, एसपी इंडस्ट्रीज, रायपुर