रतनपुर सीएमओ ने नहीं की मदद, समाजसेवी आए सामने


रतनपुर । दादी फूल बाई खुश है । दूर देश से अब बेटा बहु भी घर लौट आये है। स्वास्थ्य अमला भी घर आया। बेटा बहु के साथ पोता गुंडल को दिल के साथ दिगर बीमारी का बेहतर इलाज कराने अपने साथ लेकर गया है। आज गुडल यानी येशु का आधार भी बनकर दादी के हाथ में आ गया है। दादी फूल बाई को उम्मीद है कि अब उसका पोता सेहतमंद होकर बेटा बहु की गोद में घर लौट आएगा।
गुंडल की जांच के बाद बेहतर इलाज के लिए स्वास्थ्य प्रशासन ने कवायद शुरू की तो आधार कार्ड आड़े आ गया। दादी फूल बाई ने बेहतर इलाज मिलने पर गुडल के ठीक हो जाने की उम्मीद के साथ बेटे बहु को परदेश से घर लौट आने खबर भिजवा दी। बेटे की ममता ने माँ-बाप को भी घर लौटने पर मजबूर कर दिया। वे भी घर लौट आये। फूल बाई ने उनसे गुडल के आधार कार्ड नहीं होने की दिक्कत बताई। दादी फूल बाई बेटे के साथ गुंडल का आधार कार्ड बनवाने बस स्टैंड रतनपुर स्थित कम्प्यूटर सेंटर पहुंचा।

आधार कार्ड बनाने मांगे एक हजार
दादी फूल बाई के मुताबिक बस स्टैंड स्थित कम्प्यूटर सेंटर में गुंडल का आधार कार्ड बनाने एक हजार रुपए की मांग की गई। घर में तो खाने के लाले हैं, पोते का आधार कार्ड बनाने कहाँ से पैसे आए। वह बेटे और पोते के साथ निराश होकर लौट आई। आधार कार्ड बनाने की गुहार लेकर नगर पालिका प्रशासन के पास भी गई। जहाँ न तो सीएमओ मनीष वारे ने उसकी मदद की और न ही किसी कर्मचारियों ने सहयोग किया। बेटे और पोते के साथ हैरान परेशान दादी भटकती रही।

सुषमा ने बनाया फ्री में आधार कार्ड
पोते और बेटे के साथ आधार कार्ड बनवाने भटक रही दादी की मुलाकात सामाजिक कार्यकर्ता डॉ राजू श्रीवास, डॉ महेंद्र कश्यप सुधाकर तंबोली और अभिषेक मिश्रा से हुई। वे उन्हें लेकर लोक सेवा केंद्र संचालक सुषमा ताम्रकार पति अशोक ताम्रकार के पास पहुंचे। सुषमा ने बताया कि पहली बार आधार कार्ड बनवाने के लिए एक रुपया भी नहीं लगता।बहन सुषमा के सहयोग से बुधवार को गुडल का आधार कार्ड बनकर तैयार हो गया। जिसे उसकी दादी फूल बाई को उनके घर जाकर सौंप दिया गया।

माँ बाप के साथ इलाज के लिए गया गुंडल
बुधवार की सुबह जब हमारी टीम पहुंची तो दादी फूल बाई खुश नजर आई। उसने बताया कि उसके घर एक और नन्हा मेहमान आया है। उसके बेटी का बेटा हुआ है । मंगलवार को स्वास्थ्य विभाग की टीम भी गुंडल को उसके माँ बाप के साथ बेहतर इलाज करने के लिए लेकर बिलासपुर गई है। उसे अब भी नहीं मालूम कि उसके पोते का इलाज कहाँ हो रहा है । वो तो इसी बात से खुश है कि उसका गुंडल अब स्वास्थ होकर अपने माँ बाप की गोद में सवार होकर घर लौटेगा।

गौरतलब हो कि नया साल के पहले दिन *thecentralnews.in* ने मासूम दिव्यांग गुंडल के अनकही दर्द की मार्मिक कहनी *आवाजों के बाज़ारों में खामोशी पहचाने कौन….* शीर्षक से पाठकों तक पहुंचाई है. इसके दूसरे ही दिन सोमवार को इस पर सकारात्मक पहल भी शुरू हुआ. स्वास्थ्य अमले ने उसके घर पर जाकर गुंडल के दिल की आवाज सुनी और दादी से चर्चा कर जरूरी जानकारी हासिल की. चिरायु की टीम उसके घर पहुंची. जांच व बेहतर इलाज के लिए गुंडल को बिलासपुर जिला अस्पताल लेकर गई. जहाँ जांच में खुलासा हुआ कि गुंडल को सेरेब्रल पाल्सी नाम की बीमारी है। इससे पीड़ित मरीजों को चलने-फिरने, बैठने में तकलीफ होती है। बच्चा मानसिक रूप से विक्षित्त और कुपोषित होता है। जांच में बच्चे को दिल से संबंधित बीमारी होने का भी पता चला है।
*आवाजों के बाज़ारों में खामोशी पहचाने कौन….* शीर्षक से प्रकाशित खबर में हमने बताया कि नौ महीने पेट में रख कर अपने खून से सींचने वाली माँ भी कलेजे के टुकड़े की इस हालत को नियति समझ कर पति के साथ बे फिक्र कमाने खाने ईंट भट्ठे में काम करने लखनऊ उत्तर प्रदेश चली गई है. बुजुर्ग दादी अपने दूसरे नाती-पोतों के साथ ही बियाबान में इसकी परवरिश कर रही है. परवरिश बोले तो भगवान के भरोसे… धरती माँ की गोद में… धूल-मिट्टी, ओढना-बिछौना है.
बुजुर्ग दादी को अपने इस दिव्यांग पोते का नाम भी नहीं मालूम. नाम पूछा तो अगल-बगल झांकने लगी. पास बैठे पोते-पोतियों से पूछा तो उन्होनें बताया गुंडल है इसका नाम. उम्र चार साल. माँ-बाप के बारे में पूछने पर बताया उसके बाप का नाम दिनेश गंधर्व और माँ का नाम जयंती है. तीन भाई बहनों में बीच का है गुंडल. जन्म के बाद बढ़ती उम्र के साथ उसका शरीर विकसित नहीं हो पाया. जिसके चलते अपने पैरों पर खड़ा होना तो दूर, बैठ भी नहीं पाता. दूसरों की बातों को समझ तो लेता है पर बोल नहीं पाता. जमीन पर हमेशा लेटे रहना और जिंदा होने को जताने शरीर को हरकत देकर सरकते रहना ही उसकी नियति है. दिनचर्या की क्रिया कलापों के लिए भी उसे दूसरे के आसरे की जरूरत पड़ती है. हाथ और दोनों पैर हरकत करते हैं जो उसे सरकने में मदद करते है. दादी के मुताबिक उसके दिल में छेद भी है, बेटे-बहू ने उसका खूब इलाज कराया रायपुर तक इलाज कराने के लिए लेकर गए. लेकिन कहीं से भी कोई उम्मीद की किरण नजर नहीं आई.

दादी के आसरे छोड़ मां-बाप गए कमाने-खाने
गुंडल अब करीब चार साल का हो गया है उसके भाई-बहन ठीक ठाक है, छोटी बहन तो दौड़ लगा लेती है. दादी के मुताबिक वे अनुसूचित जाति से है. पुरखों की पूंजी जमीन-जायदाद तो है नहीं, जिससे आय हो और परिवार का भरण-पोषण हो. परिवार पालने काम तो करना ही होगा न. बच्चों को उसके पास छोड़कर बेटे-बहू कमाने-खाने ईंट भट्ठे में काम करने लखनऊ चले गए हैं. सरकारी राशन दुकान से उसे पैतीस किलो चावल मिलता है इसी से उसका और बच्चों के खाने पीने की व्यवस्था हो जाती है. आबादी से दूर बियाबान में मल्ली तालाब के पार पर झोपड़ी बनाकर रहने के सवाल दादी कहती है. उनका घर वार्ड क्रमांक 11 भाटापारा दर्रीपारा में है.

गुंडल को है दिल का रोग और सेरेब्रल पाल्सी नाम की बीमारी

स्वास्थ्य विभाग का एम्बुलेंस लेकर चिरायु दादी फूल बाई के साथ उसे जिला चिकित्सालय बिलासपुर लेकर गए। जहाँ जिला शीघ्र हस्तक्षेप केन्द्र में शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. प्रेमांकुर गुप्ता ने उसके स्वास्थ्य की जांच की। जांच में खुलासा हुआ कि गुंडल को सेरेब्रल पाल्सी नाम की बीमारी है। इससे पीड़ित मरीजों को चलने-फिरने, बैठने में तकलीफ होती है। बच्चा मानसिक रूप से विक्षित्त और कुपोषित होता है। जांच में बच्चे को दिल से संबंधित बीमारी होने का भी पता चला है । उसके बेहतर इलाज के लिए प्रशासन जुटा है।