हताशा के बीच संचालन में दलहन मिलें



भाटापारा। 1 रुपए मंडी शुल्क, 50 पैसे कृषक कल्याण शुल्क और 20 पैसे निराश्रित शुल्क। कुल जमा 1 रुपए 70 पैसे प्रति क्विंटल। अधिसूचित कृषि उपज पर लिया जा रहा यह कर, दलहन मिलों पर दोहरी मार जैसा माना जा रहा है क्योंकि आ रही दलहन की कीमत लगातार बढ़ रही है, तो तैयार उत्पादन के लिए बाजार तेजी से घट रहा है।

आएंगे अच्छे दिन, जैसे वाक्य से भरोसा उठता जा रहा है, दलहन मिलों का क्योंकि तरह-तरह के कर प्रभावी होने लगे हैं, तो प्राकृतिक आपदा की वजह से कच्ची सामग्री की कीमत लगातार बढ़ रही है जबकि अनुपात में बाजार घटते क्रम पर है। ऐसे में दलहन मिलों का संचालन बेहद कठिन होता जा रहा है। संकट की गहराई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यूनिट बंद करने जैसे विचार बनने लगे हैं।

न्याय संगत नहीं

प्रांगण से दलहन की खरीदी करने पर 1 रुपए मंडी शुल्क, 50 पैसे कृषक कल्याण और 20 पैसे निराश्रित शुल्क को न्याय संगत इसलिए नहीं माना जा रहा है क्योंकि कई राज्य ऐसे हैं, जहां ऐसा शुल्क नहीं लिया जाता। जहां लिया जा रहा है, वहां यह बेहद कम है। छत्तीसगढ़ में मैदानी तस्वीर अलग ही है। प्रति क्विंटल लिया जा रहा यह शुल्क तब और बढ़ जाता है, जब तौलाई, भराई और परिवहन खर्च जोड़े जाते हैं।

प्रतिकूल असर इस रूप में

तीन तरह के जो शुल्क लिए जा रहे हैं उसका सीधा और पहला असर प्रांगण से कम होती खरीदी के रूप में सामने आ रहा है। उस क्षेत्र में स्वाभाविक प्रभाव देखा जाने लगा है, जिसे दलहन उत्पादक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। कमजोर खरीदी के बाद दलहन की खेती करने वाले किसान तेजी से रकबा कम कर रहे हैं क्योंकि इकाइयां दीगर प्रांत से दलहन की खरीदी कर रही हैं।

कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच संचालन

दलहन इकाइयां, मंडी शुल्क के विविध रूप से तो हलाकान हैं ही, साथ ही प्रतिस्पर्धी बाजार में ले- देकर खुद को बचाए रखने की जद्दोजहद है क्योंकि दीगर प्रांत का उत्पादन छत्तीसगढ़ की अपेक्षा कीमत में कम ही है। संकट की गहराई कितनी होगी? यह केवल इसी बात से जानी जा सकती है कि शुल्क की दरों में बढ़ोतरी के संकेत मिल रहे हैं। राहत की आस में हैं दलहन मिलें।

स्थिर है मंडी शुल्क

अधिसूचित कृषि उपज  पर लिया जा रहा  शुल्क फिलहाल ठहरा हुआ है। शासन का जो भी आदेश आएगा, उसे स्वीकार किया जाएगा।
-एस एल वर्मा, सचिव, कृषि उपज मंडी, भाटापारा

By MIG