रतनपुर। शहर ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे हुए हैं। धूल धूसरित ऐतिहासिक धरोहरों में से एक हाथी किले के प्रवेश द्वारा के बाजू में पड़ी धड़ विहीन प्रतिमा की शूरवीरता को शहर के लोग गाहे बगाहे याद कर खुश हो लेते हैं, या खुश इसलिए भी होते हैं कि इसके अलावा कोई चारा भी नहीं है। सब जानते हैं कि शहर के द्वारपाल के पास जाकर उनकी शेखी भी दम तोड़ देती है। अब आप भी सोंच रहे होंगे कि भई हम कहना क्या चाह रहे हैं। भाई हम चर्चा “वीर बहादुर”, “बब्बर शेर” और “बहादुर” की करना चाह रहे हैं । छुट्टी की रात हुई घटना की चर्चा रविवार दिन भर रही। इसकी पुष्टि देर शाम भीम चौक पर पसरा सन्नाटा भी कर रहा था। देर रात तक सन्नाटे के ताने बाने को तोड़ने बहादुर की मौजूदगी थी न “वीर बहादुर”, “बब्बर शेर” की गस्ती।

हमारी बातें फिरकी लेने सी लग रही होगी। सोंच रहे होंगे कि हम आखिर कहना क्या चाह रहें हैं। तो चलिए खुलासा कर ही देते हैं। तो मामला ये है कि शनिवार की देर शाम गस्ती पर निकले थे “वीर बहादुर” साथ में “बब्बर शेर” भी थे, उनकी भिड़ंत “बहादुर” से हो गई । “बहादुर” को देख ” वीर बहादुर” ने दहाड़ लगाई साथ “बब्बर शेर” था तो दस मन की ताकर भी “वीर बहादुर” में समां गई । “बहादुर” के गिरेहबान में हाथ डाल बाहर खींच लाया भरे चौराहे सड़क पर. अब “बहादुर” सड़क पर … “बब्बर शेर” भी टूट पड़ा गिदड़ों के साथ “बहादुर” पर . लागू हो गया “जंगल राज”। “बब्बर शेर” भूल गया राज तो संविधान का है, गणतंत्र के अमृत काल का एक और ही दिन बीता था. बीते कल को ही तो कलफ लगी खुशबुदार वर्दी के साथ राष्ट्र ध्वज फहराया था कंधे पर जगमगाते सितारों के साथ सलामी भी ठोकीं थी। सीना चौड़ा कर बताएं होंगे गणतंत्र का अमृत काल है। पहली बार जब तन पर ये वर्दी चढ़ी होगी और कंधे पर सितारें सजे होंगे तब ही तो संविधान की शपथ ली होगी। फिर गणतंत्र में अमृतकाल के पार फिर ये “जंगल राज” कैसा … ?

रविवार की सुबह सूरज की रोशनी जैसे जैसे फैलती रही वैसे वैसे ही शहर के हृदय स्थल पर देर शाम घटित “वीर बहादुर”, “बब्बर शेर” की और “बहादुर” के मुठभेड़ के किस्से कोने कोने में रोशन होते रहे। इस पर चार चांद चलित दूर संवाद यंत्र पर तैर रहे चल चित्र ने लगा दिया। घटना “माननीय” के इलाके की है। ऐसे मामलों पर माननीय को महारथ हासिल है, या यो कहलो पीएचडी है तो अति संयोक्ति नहीं होगी। कानफूंसी भी शुरू हो गई। लोगों की आखरी उम्मीद माननीय ही हैं। ऐसा किवदंती भी हैं। लोकतंत्र में गणतंत्र बचा रहे ऐसी कोई पहल रविवार देर शाम तक सुनने में नहीं आई… उधर गणतंत्र के अमृत काल के पार “बब्बर शेर” ने “जंगल राज” को चरितार्थ करने की ठान ली हो, चाक चौबंद किले बंदी कर ली है। “बहादुर” बेवड़ा दर्शा दिए गए हैं। दो आदतन गवाह नामजद कर लिए गए हैं। मय ब्यौरा तहरीर दर्ज कर ली गई है। इन सब के बीच “जंगलराज” पर भारी वो चल चित्र ….