हार्वेस्टर ने छिना खलिहान का काम
भाटापारा। तैयारी पूरी है खरीफ फसल की कटाई के बाद लगने वाले बेहद जरूरी झाड़ू-बुहारी, टोकनी और सूपा की मांग पूरा करने के लिए। दूसरी तरफ दीपावली पूर्व शहरी क्षेत्र की भी मांग की राह देखी जा रही है।
रहती है पूरे साल मांग झाड़ूबुहारी, सूपा और टोकनी में लेकिन बीते पांच साल में ग्रामीण मांग खासकर फसल कटाई के बाद की स्थितियों में तेजी से बदलाव आया है। ऐसा इसलिए देखा जा रहा है क्योंकि तकनीक के बढ़ते उपयोग ने परंपरागत बाजार को तगड़ी चोट पहुंचाई है। इनमें झाड़ू-बुहारी और संबंधित सामग्रियों का बाजार सबसे ज्यादा नुकसान में है।

खलिहान नहीं, खेत में
फसल कटाई के पखवाड़े भर पहले से ही खलिहान की साफ- सफाई की जाती थी, जिसमें झाड़ू-बुहारी, टोकनी और सूपा अनिवार्य होता था लेकिन अब खेत में ही कटाई मिसाई और सफाई की सुविधा हार्वेस्टर में ही मिल जाती है। इसलिए इन चारों सामग्रियों का बाजार महज 30 से 40 फ़ीसदी रह गया है। ऐसे में बड़ी मांग वाला यह क्षेत्र तेजी से समाप्ति की ओर है।
मांग घटी, शहरी क्षेत्र में भी
प्लास्टिक की झाड़ू-बुहारी, सूपा और टोकनियां आ गई हैं, तो जाला झाड़ू भी पहुंच चुका है।बेहद प्रतिकूल स्थितियों का सामना कर रहे हैं प्राकृतिक संसाधनों से बनने वाली झाडू-बुहारी,सूपा और टोकनियां बनाने और बेचने वाले क्योंकि मांग शहरी क्षेत्र से भी नही निकल रही है।

सूपा 100 से 150 रुपए
खरीफ सत्र और दीपोत्सव की मांग निकलने की राह देख रहा यह कारोबार, इस समय झाडू-बुहारी 15 से 25 रुपए प्रति नग की दर पर बेच रहा है, जाला झाडू की कीमत 30 से 50 रुपए बताई जा रही है। टोकना 50 से 150 रुपए और सूपा में 100 से 150 रुपए की दर बोली जा रही है।