कागज, कोयला, औषधि और दे पशुआहार नाम है इसका सिरस

सतीश अग्रवाल

बिलासपुर । विशेषता- ठूंठ से भी तैयार होते हैं पौधे। सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि सफेद सिरस के नाम से पहचानी जाने वाली वानिकी वृक्ष की यह प्रजाति बंजर, सूखी और उसर ज़मीन पर बेहतर परिणाम देती है। यह जान लेना भी जरूरी होगा कि सिरस का हर हिस्सा काम का माना गया है।

जाना-पहचाना नाम है सिरस। लेकिन गुणों की खान है यह प्रजाति। पत्तियों से लेकर तना, छाल और जड़ में जिन गुणों का होना पाया गया है, उससे हर कोई अचंभित है। ढेर सारी खूबियों के खुलासे के बाद वन विभाग और निजी क्षेत्र की नर्सरियों में भी बड़ी संख्या में इसके पौधे तैयार किए जा रहे हैं क्योंकि मांग क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है।

बनते हैं ठूंठ से पौधे

सिरस शायद इकलौता ऐसा वृक्ष होगा, जिसके पौधे ठूंठ से भी तैयार किए जाते हैं। बीज का उपयोग इसके लिए कम होता है क्योंकि अंकुरण क्षमता कम होती है और इसमें समय भी लगता है जबकि ठूंठ से तैयार होने वाले पौधे अपेक्षित समय में मिल जाते हैं। इसके अलावा दिलचस्प यह कि इस विधि से तैयार पौधों के रोपण का तरीका बेहद आसान है।

मंजूर है ऐसी धरती

अनुसंधान में सफेद सिरस के लिए सूखी, बंजर और उसर भूमि को सबसे उपयुक्त पाया गया है। यह इसलिए क्योंकि यह प्रजाति ऐसी ही भूमि में शीघ्र बढ़वार लेती है। ज्यादा दिलचस्प यह कि सिरस को उच्च प्रकाश मंजूर है। पाला रोधी सिरस, आग के प्रति बेहद संवेदनशील होता है।

हर हिस्सा अनमोल

महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश में सिरस की पत्तियां और कोमल शाखाएं हरा चारा के लिए उपयोग में आती है। बेहद मजबूत इसकी लकड़ियों से पैनल,टेबल बोर्ड, गाड़ियों का फ्रेम और कृषि उपकरण बनते हैं। 86.56 प्रतिशत कार्बन होने की वजह से ज्वलनशीलता क्षमता बेहद उच्च होती है। कोयला को ग्रेड-1 का दर्जा मिला हुआ है।

भरपूर नाइट्रोजन जड़ों में

सिरस की जड़ों में मिट्टी को बांधकर रखने की क्षमता अच्छी होती है। वायुमंडल से नाइट्रोजन ग्रहण करके भूमि की उर्वरा क्षमता को बढ़ाता है। इस वजह से जड़ों का उपयोग, कृषि वानिकी के क्षेत्र में लगातार बढ़ रहा है। तटीय इलाकों की भूमि के लिए यह प्रजाति वरदान से कम नहीं है।

बहुउपयोगी वृक्ष

सफेद सिरस की खेती व्यापारिक फसल के तौर पर की जाती है। इसकी लकड़ी का उपयोग कागज, कोयला बनाने और औषधीय रूप में किया जाता है। इसके अतिरिक्त पत्तों का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है।

अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर