कईहा तालाब के सौंदर्यीकरण के पहले बड़ा सवाल

भाटापारा। करते थे स्नान। पूजा भी इसके ही जल से की जाती थी और भोजन के लिए पानी की जरुरत भी यही पूरा करता था। 60 के दशक में जैसा इसका स्वरूप था,क्या वह स्वरूप लौटा सकेंगे ? सवाल झकझोर कर गया।कम से कम मेरे पास तो जवाब नहीं था, इसलिए चुप रह गया।

85 बरस के हो चले बजरंग टोडर को 72 घंटे पहले का वह दृश्य अच्छी तरह याद है जब कईहा डबरी (कईहा तालाब) के सौंदर्यीकरण के लिए पूजा हो रही थी। मंच से नाम पुकारा गया और जाने पर सम्मान स्वरूप माला पहनाने जैसी औपचारिकता के प्रयास किए गए। हतप्रभ रह गए उपस्थित लोग, जब माला पहनने से इंकार कर दिया। इनकार के शब्द जैसे थे, उसे जानना जरूरी होगा।”नालियों का पानी इसमें आने से कैसे रोकेंगे? पानी में बहा रहे हैं इतने सारे पैसे, ठोस काम चाहिए जो सभी को नजर आए।” जवाब नहीं थे, इसलिए आयोजन रस्मी तौर पर पूरा कर दिया गया।

इसलिए सवाल

शहर की आधी आबादी का गंदा पानी का दबाव सहता है कईहा तालाब। लगभग 5 एकड़ के रकबे में विस्तारित, इस तालाब के सौंदर्यीकरण की योजना हाथ में ली गई है। लगभग 55 लाख रुपए के व्यय का अनुमान है। यह राशि अंबुजा सीमेंट की ओर से मंजूर की गई है। बड़ा सवाल यह है कि नालियों का पानी कैसे रोका जाएगा ? मेड़ को पार कर, तालाब की मुख्य भूमि तक हो चुके कब्जे कैसे हटाएंगे ? बारिश का जो पानी जमा होगा, वह पूरे साल शुद्ध व प्रदूषण रहित हो, इसके लिए उपाय क्या होंगे ? जल भराव के बाद अतिशेष पानी किस रास्ते से, कैसे निकलेगा ? और भी कई सवाल हैं जिसके जवाब काम होने के पहले पूछे जा रहे हैं।

तब और अब

1963 का वह बरस बजरंग महाराज को अच्छी तरह याद है जब कईहा तालाब की पहली बार सफाई हुई थी। साफ-सफाई के बाद जब मिट्टी की बारी आई, तब खेतों में डालने के लिए मानो होड़ सी लग गई। देखते-ही-देखते कुछ ही दिन में तालाब ना केवल साफ हो गया बल्कि बारिश के बाद यह घरेलू जरूरतों को पूरा करने लगा। अब हालात बदल गए हैं और लोग भी बदल गए हैं। अब नालियों का पानी इसमें जाता है। हद तो यह कि सार्वजनिक शौचालय भी इसकी मेड़ पर बना दिए गए हैं। 5 एकड़ के रकबे में फैला यह तालाब एकाध एकड़ में बचा होगा, तो बहुत बड़ी बात होगी।

बस इतना कर दीजिए…!

शहर के तालाबों की दुर्दशा को देखते हुए उन्हें सही स्वरूप में लाने के लिए मैंने कई बार बात की, हामी तो सभी ने भरी लेकिन काम किसी ने नहीं किया। 85 बरस की उम्र हो गई है, अब सेहत साथ नहीं देती, पर दुख बहुत होता है। अपनी पीड़ा कुछ ऐसे व्यक्त कर रहे हैं जिन्हें शब्दों में समेटना बेहद कठिन है। जनप्रतिनिधियों से बजरंग महाराज बस इतना ही चाहते हैं कि स्नान करने जैसा पानी इसका रहे, नालियां तत्काल बंद हों और तालाब की जमीन पर बसाहट अन्यत्र स्थापित की जाए। यदि ना कर पाए तो आपका पैसा व्यर्थ में जाएगा।