बिलासपुर। भारत में कृषि की पारंपरिक परिभाषा अब बदल रही है। आज की स्थायी कृषि वह है जो न केवल अन्न उत्पादन करे, बल्कि पोषण सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण, और किसानों को दीर्घकालिक आय भी प्रदान करे। इस दिशा में उद्यानिकी, अर्थात फल, सब्जी, फूल, मसाले एवं औषधीय पौधों की खेती, एक प्रभावशाली और टिकाऊ समाधान बनकर उभर रही है।

पेंड्रा-गौरेला- मरवाही वन-प्रधान और आदिवासी बहुल जिले में उद्यानिकी की संभावनाएँ अत्यधिक हैं, जहाँ जलवायु, मिट्टी और पारंपरिक ज्ञान की समृद्धि विद्यमान है। यदि इन संसाधनों का समुचित उपयोग किया जाए, तो यह क्षेत्र स्थायी कृषि की मिसाल बन सकता है।

वर्तमान कृषि परिदृश्य और समस्याएँ

पेंड्रा-गौरेला-मरवाही जिले में किसानों को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। क्षेत्र की अधिकांश खेती वर्षा पर निर्भर है, और खरीफ सीजन के बाद भूमि अक्सर खाली पड़ी रहती है। सिंचाई संसाधनों की सीमितता के कारण रबी और गर्मी की फसलें प्रभावित होती हैं। इसके साथ ही कृषि में फसल विविधता की कमी, पोषण सुरक्षा का अभाव, तथा किसानों की आय में अस्थिरता जैसी समस्याएं भी प्रमुख हैं।

उद्यानिकी का स्थायी कृषि में योगदान

उद्यानिकी खेती का सबसे बड़ा लाभ इसकी पोषणात्मक एवं आर्थिक विविधता है। फल एवं सब्जियाँ विटामिन, खनिज और पोषक तत्त्वों से भरपूर होती हैं जो ग्रामीण परिवारों को स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करती हैं। आम, अमरूद, नींबू, हल्दी, अदरक, पपीता जैसी फसलें स्थानीय जलवायु में भी आसानी से उगाई जा सकती हैं और बाजार में इनकी मांग भी बनी रहती है।

इसके अतिरिक्त, बहुवर्षीय बागवानी फसलें भूमि की नमी को संरक्षित करती हैं और सूक्ष्म जलवायु बनाकर फसलों को गर्मी व सूखे से बचाती हैं। महिलाओं को प्रसंस्करण, बीज संरक्षण, अचार, स्क्वैश आदि बनाने जैसे कार्यों में सक्रिय भागीदारी मिलती है जिससे उन्हें आय के अवसर मिलते हैं। इसी तरह, किचन गार्डन या पोषण वाटिका मॉडल से घरेलू पोषण सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है।

पेंड्रा-गौरेला-मरवाही की उद्यानिकी संभावनाएं

पेंड्रा-गौरेला-मरवाही की जलवायु और मिट्टी उद्यानिकी के लिए अत्यंत उपयुक्त है। यहाँ की औसत वर्षा 1200–1400 मिमी है, जो फल व सब्जी फसलों के लिए पर्याप्त है। क्षेत्र में लाल एवं बलुई मिट्टियाँ पपीता, अमरूद, नींबू और कंद फसलों के लिए अनुकूल हैं।

इस क्षेत्र में आम, अमरूद, बेल, चिरौंजी, महुआ जैसे पारंपरिक फल वृक्ष पहले से मौजूद हैं, जिनकी देखरेख कर और वैज्ञानिक पद्धति से इन्हें व्यावसायिक स्तर पर बढ़ाया जा सकता है। सब्जियों में भिंडी, लौकी, टमाटर, परवल, जिमीकंद, प्याज, आलू जैसी फसलें सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं। मसालों में हल्दी, अदरक, लहसुन और धनिया की खेती कम पानी में भी की जा सकती है और यह अत्यधिक लाभकारी है।

फूलों की खेती, जैसे गेंदा और रजनीगंधा, धार्मिक उपयोग और बाजार बिक्री के दृष्टिकोण से भी उपयुक्त है। औषधीय पौधों में तुलसी, कालमेघ, शतावरी जैसी प्रजातियाँ स्थानीय वातावरण में अच्छी तरह विकसित हो सकती हैं और आयुर्वेद आधारित बाजार की मांग को पूरा कर सकती हैं।उद्यानिकी आधारित कृषि मॉडल

उद्यानिकी आधारित कृषि मॉडल

पेंड्रा-गौरेला-मरवाही में विविध कृषि मॉडल अपनाकर किसानों की आय और खाद्य सुरक्षा में वृद्धि की जा सकती है। उदाहरणस्वरूप:

  • बागवानी + कृषि मॉडल में एक ही खेत में दलहन या अनाज के साथ आम, अमरूद जैसे फलों को उगाकर वार्षिक और बहुवर्षीय आय का संयोजन संभव है।
  • बागवानी + पशुपालन मॉडल में बेल, नींबू जैसे वृक्षों के साथ चारागाह घास लगाकर दूध उत्पादन को जोड़ा जा सकता है।
  • किचन गार्डन मॉडल ग्रामीण घरों के पीछे छोटे क्षेत्र में सब्जियाँ, औषधीय पौधे और फूल उगाकर पोषण सुरक्षा और घरेलू उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है।

सरकारी योजनाएं और सहायता

उद्यानिकी को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की कई योजनाएं कार्यरत हैं।

  • राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) के अंतर्गत पौधारोपण, ड्रिप सिंचाई, शेडनेट, नर्सरी विकास और विपणन हेतु सहायता दी जाती है।
  • PM-FME योजना के तहत “एक जिला-एक उत्पाद” के रूप में प्रसंस्करण इकाइयाँ विकसित की जा रही हैं।
  • PKVY योजना जैविक उद्यानिकी को बढ़ावा देती है।
  • वनबंधु योजना के अंतर्गत आदिवासी क्षेत्रों में बागवानी विकास हेतु विशेष प्रोत्साहन उपलब्ध है।
  • छत्तीसगढ़ बागवानी विभाग किसानों को निःशुल्क पौधे, प्रशिक्षण, तकनीकी मार्गदर्शन, और अनुदान प्रदान करता है।

रणनीति और सुझाव

  • स्थानीय फल प्रजातियों को प्राथमिकता दी जाए जैसे बेल, चिरौंजी, महुआ, जो कम देखरेख में बेहतर उत्पादन देते हैं।
  • सामुदायिक उद्यानों की स्थापना स्कूलों और आंगनबाड़ियों में की जाए ताकि बच्चों को पौष्टिक आहार और उद्यानिकी शिक्षा मिल सके।
  • महिलाओं को प्रसंस्करण, अचार-स्क्वैश निर्माण एवं विपणन में प्रशिक्षण देकर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जाए।
  • बाजार व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए — स्थानीय हाट-बाजार, मंडी, और डिजिटल बिक्री प्लेटफॉर्म से जोड़कर उत्पादों को सही मूल्य मिल सके।
  • शीतगृह व भंडारण सुविधाएं प्रदान की जाएं ताकि फसलों की ताजगी और मूल्य दोनों सुरक्षित रह सकें।

पेंड्रा-गौरेला-मरवाही जिले में उद्यानिकी न केवल एक वैकल्पिक कृषि प्रणाली है बल्कि यह स्थायी, पोषणमूलक और आर्थिक रूप से लाभदायक विकल्प भी है। यदि स्थानीय जैव-विविधता, पारंपरिक ज्ञान, और आधुनिक तकनीकों का समुचित समन्वय किया जाए, तो यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ का बागवानी मॉडल जिला बन सकता है।

“फल, फूल और फसल — तीनों मिलकर बनाएं समृद्ध किसान, समृद्ध गाँव, समृद्ध भारत।”

अजीत विलियम्स
वैज्ञानिक (वानिकी), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर