छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रतनपुर की घटना
रतनपुर। मां महामाया देवी की नगरी है रतनपुर। इन दिनों नवरात्र का पर्व चल रहा है। लाखों की तादाद में श्रद्धालु देवी दर्शन के लिए देश भर से आ रहे। इनकी सुरक्षा और सुविधा जिम्मेदारी जिला प्रशासन की है। शुक्रवार की शाम इसका जायजा लेने कलेक्टर अवनीश शरण और पुलिस अधीक्षक मंदिर परिसर में ही मौजूद रहे। ठीक उसी दिन उसी शहर के सरकारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मानसिक रूप से कमजोर आदमी को उपचार मुहैया कराने नागरिक व्यवस्था से जद्दोजहद करते रहे। किसी तरह भर्ती किया तो ठीक से उपचार नहीं किया। मरीज “लामा” हो गया। शनिवार की सुबह नागरिक फिर उसे अस्पताल लेकर पहुंचे। जहां उसने दम तोड़ दिया।

शहर के पुराना बस स्टैंड स्थित सीता राम होटल सबसे सुरक्षित ठिकाना है मानसिक रुप से कमजोर और विक्षिप्त लोगों का। संवेदनशील संचालन संजय चंदेल की वजह ऐसे लोगों को कभी भूखा नहीं सोना पड़ता। इसके आस पास ही ऐसे एक-दो लोग आपको हर रोज मिल जाएंगे। वो भी पच्चीस-तीस साल का युवा रहा होगा। यही कोई ढाई साल पहले ही तो इधर-उधर से भटकर कर शहर आया था। तब वो न कुछ समझ पाता था और न कुछ बोल पाता था। खुले आसमान के नीचे यहां कही पसर जाता। रात बीत जाती दिन गुजर जाता। लोगों को लगता तो आते जाते लोग खाने पीने की कुछ सामान थमा जाते। नंग धड़ग शरीर को ढकने नए पुराने कपड़े भी दे जाते। कौन था ? कहां से आया था ? माता-पिता ने क्या नाम दिया था ?, कुछ भी तो जाते जाते नहीं बता पाया। मानवीय संवेदना से जुड़े रिश्तों से उसको नाम मिला “लल्लू” ।

मानसिक रूप से कमजोर था पागल नहीं। कुछ ही अरसे में शहर के लोगों से मिली ममता और वात्सल्य ने उसके कंठ खोल दिए। वो टूटे फ़ूटे शब्दों में अपनी भावनाएं जताने लगा। प्रेम और तिरस्कार को समझने लगा। प्रतिकार भी करने लगा। बदलाव दिखने लगा। अब वो मांगता नहीं था मेहनत से कमाने लगा भूख के लिए रोटी। कुछ पुंजी, जो उसके डिब्बे में भी जमा होने लगे। पर अब भी वो कौन था, कहां से आया था, इस सवाल का जवाब उसे देना था। सब कुछ ठीक चल रहा था। कि अचानक सप्ताह भर पहले हाथी किला परिसर में दोपहर में सोते समय एक विक्षिप्त ने हमला कर उसके जांघ पर ईंट पटक दिया। इससे उसके जांघ पर सूजन हो गया। असहनीय दर्ज से उसका चलना फिरना भी मुश्किल हो गया। घिसटने लगा, खाना पीना तक छोड़ दिया। उसके चेहरे पर उभरी पीड़ा से व्यथित शहर के संवेदनशील नागरिकों ने अलग अलग तीन दिन उसे इलाज के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रतनपुर लेकर गए। पहले दिन तो उसे दवा देकर चलता कर दिया गया। फिर हालत में सुधार नहीं होने पर एक्स-रे कराने लेकर जाने पर एक्स-रे फिल्म नहीं होने की बात कह कर चलता कर दिया गया।

शुक्रवार की दोपहर तीसरी बार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रतनपुर जाने पर ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने बिना हाथ लगाए जांच किए बगैर खून की कमी होने की बात कह कर सिम्स रेफर का ही पत्र लिख दिया गया। नागरिकों ने जांच कर इलाज करने की बात कही तो अस्पताल में भर्ती किया गया। शाम में उसे फिर भगा दिया गया। उसे व्यवसायी प्रशांत यादव ने रात में खाना खिलाया गया और उसके दुकान परिसर में ही रात रुकने की व्यवस्था की।

शनिवार की सुबह उसकी तबीयत फिर बिगड़ गई। आस पास के लोग उसे फिर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रतनपुर लेकर गए। जहां कुछ देर बाद अस्पताल में ही लल्लू ने दम तोड दिया।
दोपहर तक उसकी लाश अस्पताल परिसर में पड़ी रही।जिम्मेदारों ने झांकने तक की जहमत नहीं की थी। न पंचनामा की जल्दी, न अंतिम यात्रा की हड़बड़ी, न किसी ने फोन घनघनाया, यहां कौन है उसका… तीन मंजिले अस्पताल भवन में मुर्दा सिस्टम और लोगों को छोड़कर वो अनंत यात्रा पर निकल पड़ा ….