भाटापारा कृषि उपज मंडी का हाल


भाटापारा। है कृषक विश्रामगृह लेकिन मर्जी होने पर ही खोला जाता है। वैसे प्रांगण में शेड हैं, हरियाली भी है। इसलिए ज्यादा ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी जाती। यह अलग बात है कि इन दोनों जगहों पर ताजा स्थिति में खड़े होना भी मुश्किल है।

चिंता नहीं है उन किसानों की, जिनके दम पर मंडी और बाजार की रौनक बनी हुई है। बीते एक पखवाड़े से कई तरह की दिक्कतों का सामना कर रहे किसानों की नजर उस कृषक विश्रामगृह की ओर जा रही है, जिसमें हर समय ताला लगा हुआ देखा जा रहा है। इसलिए जरूरतें किसी तरह पूरी की जा रही हैं।

मेरी मर्जी

प्रवेशद्वार बाहर से है। इसलिए असामाजिक तत्व पहुंच जाते हैं। इस तर्क के साथ विश्राम गृह में ताला लगा दिया गया है। ऐसे में मजबूरी है, सड़क पर खड़ी वाहनों के नीचे बैठने या लेटने की। बाहर भी जगह नहीं है। इसलिए यह दृश्य लगभग हर रोज देखे जा रहे हैं। अधिकारी गुजरते हैं। जनप्रतिनिधि भी निकलते हैं लेकिन ध्यान नहीं है।

प्रांगण में ऐसे दृश्य

शेड हैं लेकिन कृषि उपज से ठसाठस। बोरों के स्टेक पर किसी तरह बैठना मजबूरी है। हरियाली भी है। इन्हें सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए चबूतरे ही ले-देकर राहत देते हैं लेकिन तेज धूप के साथ गर्म हवाएं अलग परेशान कर रहीं हैं। फिर भी प्रतीक्षा करना किसानों की विवशता ही है, कृषि उपज बेचकर ही घर लौटना है।

उद्देश्य पर सवाल

बारिश, ठंड और गर्मी के दिनों में किसानों और व्यापारियों को राहत के लिए विश्राम गृह का निर्माण करवाया गया था। 2003 से 2005 की अवधि में निर्मित यह भवन फिलहाल बंद है। लिहाजा ट्रक और ट्रैक्टर के नीचे बैठकर विश्राम करने पर मजबूर हैं, किसान। रही बात व्यापारियों की, तो उन्होंने किनारा ही कर लिया है।

खुलता है

असामाजिक तत्वों की आवाजाही की वजह से सावधानी बरती जाती है। निश्चित समय विश्राम गृह खोला जाता है।
– एस एल वर्मा, सचिव, कृषि उपज मंडी, भाटापारा