कृतियाँ हैं मुक्तिबोध, लोकायतनम्, आरण्यक, क्षणिकायनी, समीक्षायन, दिनकर प्रकाश एवं प्रसादिका


बिलासपुर. अपने को साहित्यकार मानने वाले अनेक लोग यह आस लिए ही गुजर जाते हैं कि उनकी कम से कम एक आध किताबी समाज के सामने आ जाए जिससे उनके ऊपर पत्रकार, साहित्यकार होने का ठप्पा लग जाए. अन्यथा उनकी हालत तो वही रहती है ” जंगल में मोर नाचा किसने देखा? ” या “बीच जंगल में जोगी बासै, खुद ही नाचै खुद ही हांसै”। कम से कम एक- आध किताब आ जाने से बांझपन का ठप्पा उनके ऊपर से हट जाता है। किताब समाज के सामने आ जाए और लोग उन्हें साहित्यकार मान लें। कुछ की यह कामना फलीभूत होती है और कुछ कि आस मन में ही रह जाती है। वह गाते रह जाते हैं ” करूं क्या आस निराश भई”। परंतु हर कोई इतना भाग्यशाली नहीं होता कि उसकी कृति आए और अच्छे ढंग से लोकार्पण भी हो। परन्तुु उससे भी आगे की बात यह है कि, बिलासपुर के कवि अंजनी कुमार “सुधाकर ” की किताबें आयी हैं , और वह बड़े समारोह में, देश की राजधानी दिल्ली से लोकार्पित हुई हैं. सिर्फ इतना ही नहीं उन किताबों की संख्या है सात। अर्थात “सत्ते पर सत्ता” । लोग छक्का मारते हैं सुधाकर जी ने सत्ता जड़ दिया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि, वह सत्ता में बैठे लोगों को बता रहे हैं कि- सत्ता सिर्फ ताश में या राजनीति में ही नहीं होती। सत्ता सदा साहित्यकारों के हाथ में होती है।
मंजिल ग्रुप साहित्य मंच के प्रधान कार्यालय, हर्ष विहार-९३, नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय साहित्य समागम कुंभ में भारत के विभिन्न राज्यों यथा छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, आसाम, महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडु, राजस्थान, उत्तराखण्ड, हिमांचल प्रदेश, ओड़िसा, हरियाणा, मध्यप्रदेश, राज्यों से आये साहित्यकारों की उपस्थिति में छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार अंजनीकुमार ’सुधाकर’ की सात पद्य व गद्य पुस्तक कृतियाँ यथा: मुक्तिबोध, लोकायतनम्, आरण्यक, क्षणिकायनी, समीक्षायन, दिनकर प्रकाश एवं प्रसादिका लोकार्पित हुईं।
इस अवसर पर अंजनीकुमार’सुधाकर’ को मगसम के राष्ट्रीय संयोजक सुधीर सिंह सुधाकर, वरिष्ठ साहित्यकार उत्तराखंड नैनीताल से पधारे रमेश चंद्र द्विवेदी, छत्तीसगढ़ से पधारे छंदाचार्य बाबूजी भरत नायक द्वारा अंगवस्त्रम् , श्री फलम् , उरमाल्यम् भेंट किया गया. श्रेष्ठ रचनाकार व समीक्षक सम्मान स्वर्ण कमल मातो श्री सम्मान एवं समीक्षा दीपक सम्मान से सम्मानित किया गया। सुधीर सिंह ‘सुधाकर’, राष्ट्रीय संयोजक-मगसम एवं रमेशचंद्र द्विवेदी व भरत नायक बाबूजी द्वारा कृतियों की समीक्षा की गई। कार्यक्रमों में अंजनीकुमार’सुधाकर’ द्वारा अध्यक्ष व मुख्य अतिथि के रुप में छत्तीसगढ़ का साहित्यकार प्रतिनिधित्व किया गया। रचना पाठ के अंतर्गत उन्होने छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी एवं हिंदी भाषा में लिखी काव्य रचनाओं का पाठन किया।

गुमनाम मनीषियों तक तक पहुँचने की कोशिश

दिल्ली दरबार में, साहित्यकारों के दंगल में छत्तीसगढ़ का परचम लहरा कर लौटे, विभिन्न विधाओं में धकापेल लिख रहे रचनाकार अंजनी कुमार ‘सुधाकर’ ने बताया सात कृतियों के माध्यम से जीवन दर्शन, प्रकृति में प्रेम का रंग व सुगंध, राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की कुरूक्षेत्र, रश्मिरथी, प्रसाद रस के जनक कवि जयशंकर प्रसाद की कामायनी की काव्य रचनाओं पर काव्यात्मक समीक्षा का नया प्रयोग के साथ साहित्यिक समाज में गुमनाम मनीषियों के साथ चाय पर चर्चा के नाम से ऐसे लोगों के जीवन संघर्ष, अनुभव व कंटकाकीर्ण पथ पर चलकर अपने मुकाम तक पहुँच पाने में कितने कामयाब हुये को लेकर साक्षात्कार को लेखबद्ध करने का नव प्रयोग किया गया है। लोकायतनम् के माध्यम से लोक भाषा छत्तीसगढ़ी एवं भोजपुरी में लोक कला,परंपरा, संस्कृति, त्योहार, जनमानस के उद्गारों को काव्यरुप में संजोया गया है। काव्य एवं गद्य कृतियों के माध्यम से भारत को गांव से शहर तक, वनाच्छादित प्रांतर से कंक्रीट के जंगल तक, पगडंडियों से स्वर्णिम चतुर्दिक राजमार्गों तक कविता एवं आलेख के माध्यम से पहुँचने का भगीरथ प्रयास किया है। उन्होंने बताया कि साहित्य सृजन में उनकी रूचि बचपन से रही. आचार्य रामचीज तिवारी (बाबा) जो कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के सहपाठी रहे, का आभासी आशीर्वाद, पंडित सुधाकर तिवारी (बाबुजी), माँ तारा देवी तिवारी तथा नीलम तिवारी (धर्म पत्नी) का मानवीय संवेदना, वात्सल्य एवं उद्दात्त चरित्र का प्रभाव पड़ा है। कहावत है”पांड़े घर के बिलइया सियान” हिंदी में कहते हैं ” काजी घर के चूहे भी सयाने होते हैं”।

गहन अध्ययन व अनुभव का निचोड़
अंजनीकुमार’सुधाकर’ विभिन्न साहित्यिक परिवेश से गुजर कर आए हैं तो उनके पास साहित्य की परंपरा सहज रूप से विद्यमान है ही। उत्तर प्रदेश से छत्तीसगढ़ की निरंतर यात्रा संपर्क, कर्मक्षेत्र छत्तीसगढ़ में ४१ वर्षों की सेवा जिसमें संपूर्ण छत्तीसगढ़ के दूरांचल तक पहुँच कर व्यक्ति, समाज, लोक संस्कृति, लोक भाषा, जीवन शैली, ग्रामीण कृषि, जीविकोपार्जन, अर्थ तंत्र पर किया गया गहन अध्ययन व अनुभव का निचोड़ उनकी पुस्तकों में है। लोक भाषा के शब्दों को हिंदी भाषा शब्द कोश में समाहित करने का प्रयोग भी किया गया है।