जवाब का इंतजार बेसब्री से
भाटापारा। कब पकड़ा जाएगा सरगना ? यह सवाल उनसे है, जो शराब की छोटी-छोटी मात्रा पकड़ कर खुश हैं। आउटर में ठेलों में चल रहीं होटलों की जांच गंभीरता से कब करेंगे ? यह पूछना मना है क्योंकि जवाब नहीं मिलेंगे।
शहर और ग्रामीण पुलिस। इन पर हैंं आपराधिक और अवांछित गतिविधियों पर रोक की जिम्मेदारी। दोनों में इन्हें कभी भी गंभीर होता देखा नहीं गया। यही वजह है कि अवैध शराब और जुआ-सट्टा जैसी अवांछित गतिविधियां धड़ल्ले से न केवल चल रहीं हैं बल्कि दिन-ब-दिन बढ़त भी ले रहीं हैं। रोक के लिए जो कार्रवाई हो रही है, उसे महज खानापूर्ति कहा जा सकता है क्योंकि दोनों अवैध धंधे के सरगना पकड़ से बाहर हैं।

इन पर मेहरबानी
कभी 100 तो कभी 200। कभी इससे ज्यादा। अवैध शराब की यह मात्रा लगभग रोज पकड़ी जाती है। टेहका, सुरखी, ढ़ाबाडीह,निपनिया, रोहरा या सूरजपुरा। गिने-चुने यह ऐसे गांव हैंं जिसकी पहचान अवैध शराब बिक्री करने वाले क्षेत्र के रूप में बन चुकी है। सवाल यहीं से उठता है कि इन गांवों से पकड़े गए आरोपी, आपूर्तिकर्ता और आपूर्ति केंद्र का नाम, क्या नहीं बताते ?

यहां खुली छूट
जुआ और सट्टा। अपने शहर का खूब नाम है। सिस्टम का जैसा साथ, इसे मिला हुआ है उसकी मिसाल शायद ही कहीं और मिलेगी। लिहाजा खूब फल-फूल रहा है। दिखावे की होती कार्रवाई का स्वरूप, स्पष्ट बताता है कि सरगना को खुली छूट मिली हुई है। दिलचस्प यह कि कभी भी यह बताया नहीं जाता कि सजा हुई या नहीं? सवाल उठाने की कोशिश ना करें। जवाब नहीं मिलेंगे।

संभावना का नया क्षेत्र
अवैध शराब के बढ़ते कारोबार के साथ ठेलों में खुलीं चखना दुकानें संभावना का नया क्षेत्र बन रहीं हैंं, तो ऐसे ही ठेले, जुआ और सट्टा को गति दे रहे हैं। निगरानी, पूछताछ और ठोस कार्रवाई से जैसी दूरी बनाई गई है, उससे कई सवाल उठते हैं और जवाब जिन्हें देना हैं, उन्होंने चुप्पी साध रखी है।