टूट के बावजूद अपेक्षित मांग नहीं
बिलासपुर। 20 रुपए की टूट के बावजूद जूट की सुतली में उपभोक्ता मांग नहीं निकल रही है। आशंका थी कमजोर मांग की, इसलिए होलसेल और रिटेल काउंटरों ने उपलब्ध से कम रखी लेकिन इसके बाद भी अपेक्षित खरीदी नहीं निकल रही है। लिहाजा कीमतों में और गिरावट के आसार हैं।
जूट या पटसन। बरसों से किसानों के बीच बारदानों की सिलाई के लिए मजबूत सहारा रहा है। 60 से 90 के दशक के दौरान मांग ने जैसी बढ़त ली उसके बाद पटसन की व्यावसायिक खेती ने भी गति पकड़ी। प्लास्टिक के चलन के बाद, बीते तीन साल में प्लास्टिक ने सुतली बाजार में भी मजबूत पकड़ जमाई। अब हालत यह है कि इसने जूट की सुतली के लगभग 90 फीसदी बाजार में अपना कब्जा जमा लिया है। असर से कीमत में टूट आने लगी है। इसके बावजूद संतोषप्रद मांग का अभाव अभी भी बना हुआ है।

उत्पादन बढ़ा, मांग घटी
पटसन की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने समर्थन मूल्य में 250 रुपए की रिकॉर्ड वृद्धि की है। इसके बाद चालू खरीफ सत्र में 4730 रुपय क्विंटल की दर पर पटसन किसानों से इसकी खरीदी की जाएगी। मौसम ने तो साथ दिया लेकिन बाजार का साथ सीजन में भी नहीं मिल रहा है। इसलिए कीमत कम करके गिरते बाजार को थामने की कोशिश है। इसके बावजूद सफलता कोसों दूर है।

प्लास्टिक से मुकाबला
पश्चिम बंगाल और बिहार के जूट उत्पादक किसानों और जूट मिलों को गुजरात और महाराष्ट्र की प्लास्टिक इकाईयों से कड़ा मुकाबला करना पड़ रहा है। बिगड़ते हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जूट से बनी जो सुतली बीते बरस 110 रुपए किलो थी, वह इस बार 90 रुपए किलो में मिल रही है। 20 रुपए की टूट के बावजूद प्लास्टिक सुतली सस्ती है। इसकी कीमत होलसेल में 65 रुपए और रिटेल में 70 से 75 रुपये है। याने जूट से फिर भी सस्ती।
बिना कट और सस्ती
कटी हुई प्लास्टिक सुतली भले ही 65 से 70 रुपए किलो पर मिल रही हो लेकिन बिना कटी हुई प्लास्टिक की सुतली महज 60 रुपए किलो पर मिल रही है। याने दोनों स्तर पर जूट की सुतली को कड़ी टक्कर मिल रही है।
उत्पादक क्षेत्र में भरपूर फसल से जूट की कीमत काफी नीचे चल रही है। इधर दीर्घ अवधि तक चलने और कीमत में कम होने से प्लास्टिक की सुतली का चलन तेजी से बढ़ रहा है।
अनिल बजाज, संचालक, बजाज रस्सीवाला, बिलासपुर