नगर सरकार पर छाया अविश्वास का संकट

भाटापारा। अपनी पार्टी, अपनों की बातों को नही सुनने की प्रवृत्ति नगर सरकार के हुक्मरान के लिए खतरा बन रही है। विकास के काम तो दूर, दैनिक कार्यों में मनमानी को लेकर, गुस्सा इतना ज्यादा है कि यह अविश्वास प्रस्ताव के रूप में कभी भी सामने आ सकता है। इसकी तैयारी न केवल चालू हो चुकी है बल्कि हर उस पहलू को सामने लाने के प्रयास हैं, जिसके दम पर यह प्रस्ताव पारित किया जा सकता है।

निरंकुश कार्यशैली, लचर व्यवस्था, वरिष्ठों की उपेक्षा, अपने ही पार्षदों की समस्या को लेकर संतोषजनक जवाब नहीं देना, नगर सरकार के मुखिया को भारी पड़ने जा रही है। पहले गुस्सा, अब निराशा पालिका अध्यक्ष सुनीता गुप्ता के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के रूप में सामने लाए जाने की तैयारी हो चुकी है।पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को यह जानकारी तो है लेकिन जैसी चुप्पी उसने साधी हुई है उससे अविश्वास प्रस्ताव को मजबूत तरीके से रखने की मानो मंजूरी मिल रही है।

इसलिए अविश्वास

2 साल 2 महीने से नगर सरकार चला रही कांग्रेस के सामने बड़ी समस्या यह है कि काम के लिए फ्री हैंड देने के बाद पालिका अध्यक्ष की कार्यशैली जैसी होनी चाहिए वैसी कभी दिखाई नहीं दी। शहर की तस्वीर बदले, इसके लिए जैसा सामंजस्य बनाया जाना था, उसके ठीक विपरीत कार्य शैली है। अपने ही पार्षद साथियों की सलाह की अनदेखी से साफ- सफाई, चुस्त पेयजल व्यवस्था सुस्त हो चुकी है।

खतरा इसका

मुख्यालय से लगभग चार करोड़ की राशि मंजूर हुई है लेकिन राशि का अब तक उपयोग नहीं किया जा सका है। आने वाले वित्तीय साल के पहले यदि यह राशि उपयोग नहीं की गई, तो यह लैप्स हो सकती है। समय रहते इसका उपयोग ग्रीष्म ऋतु में जल संकट से निपटने में किए जाने का प्रस्ताव बेवजह रोका जा चुका है। त्वरित काम के लिए खरीदी गई जेसीबी को बिगड़े हुए महीना होने को आया लेकिन इस पर भी अपने पार्षदों की नही सुनी जा रही है।

नहीं हो रहे यह काम

स्वच्छ शहर जैसी स्थितियां यहां जरा भी नहीं है। गलियों के साथ मुख्य मार्ग के किनारों की नालियां साफ नहीं हो रहीं हैं। मंडी रोड, हटरी बाजार, सदर बाजार शेष शहर की हालत बताने के लिए काफी है। सरोवर हमारी धरोहर योजना की जैसी दुर्गति शहर में हुई है, उसकी मिसाल शायद ही कहीं देखने को मिले।

इनका मौन बढ़ा रहा संदेह

सशक्त विपक्ष का दावा करने वाली भाजपा के पास नगर पालिका में 15 पार्षद हैं लेकिन विपक्ष मजबूत है, यह कभी देखा नहीं गया। इस पार्टी के वरिष्ठ भी मौन है। 13 खुद के और 3 निर्दलियों के बूते नगर सरकार चला रही कांग्रेस के वरिष्ठों की चुप्पी के पीछे एक ही वजह सामने आ रही है कि जब सलाह या मशविरा को तवज्जो नही मिलती तो भागीदारी क्यों निभानी चाहिए? ऐसे में पार्षदों की स्थिति आसानी से समझी जा सकती है। अब अंतिम उपाय अविश्वास प्रस्ताव ही है।