यातायात व्यवस्था को चौपट करने में हम भी किसी से कम नहीं
भाटापारा। मानो या ना मानो। सच यही है कि शहर की यातायात व्यवस्था केवल छह जवान संभाल रहे हैं। जिले का सबसे बड़ा, अपना भाटापारा ना केवल महत्वपूर्ण है बल्कि भरपूर आवाजाही वाला शहर भी है। इस लिहाज से यातायात को चुस्त बनाए रखने के लिए 28 पद स्वीकृत हुए हैं, लेकिन कड़वा सच यही है कि आधा बल ही उपलब्ध है।
महत्वपूर्ण और भारी आवाजाही वाले 9 चौक-चौराहे कैसे संभाले जाते होंगे? यह वही बता सकता है ,जिसे यातायात सिपाही के नाम से जाना जाता है। नियम तोड़ना हमारी आदत में शामिल है। ऐसे में चौक- चौराहों की भीड़ के बीच किस तरह निकलना है ? यह कोई हमसे सीखें। नियंत्रित करने के लिए जवान तो हैं लेकिन यह बेचारा, काम के बोझ का मारा, की तर्ज पर ड्यूटी दे रहे जवान की मनोदशा सहज ही समझी जा सकती है। रही बात अधिकारियों की, तो इस वक्त उनकी दिलचस्पी नो- एंट्री एरिया में ज्यादा दिखाई देती है।
28 के विरुद्ध 14
जिला बनने के बाद इस शहर की अस्त-व्यस्त आवाजाही पर नियंत्रण के लिए 28 पद स्वीकृत किए गए थे। इसमें दो ए एस आई, तीन हेड कांस्टेबल और 23 कांस्टेबल की तैनाती की गई थी। लेकिन लक्ष्य के विरुद्ध एक ए एस आई 2 हेड कांस्टेबल और 11 कांस्टेबल की ही तैनाती की गई। याने 28 के विरुद्ध 14 ही ले -देकर काम संभाल रहे हैं।
करेला ऊपर से नीम चढ़ा
करेला ऊपर से नीम चढ़ा
स्वीकृति की तुलना में आधे की उपस्थिति की रही -सही कसर उस वक्त पूरी हो गई, जब इन 14 में से एक जवान को अनुविभागीय अधिकारी पुलिस के कार्यालय, एक को दैनिक कामकाज के लिए मुख्यालय जाने का फरमान जारी हुआ। तो, 3 अन्य को यातायात चौकी पर ही काम करने के आदेश जारी हुए। इस तरह बचे हुए 6 जवान शहर की यातायात व्यवस्था को किसी तरह नियंत्रण में रखे हुए हैं।
शहर भी कम नहीं
आधा दर्जन से ऊपर ऐसे चौक- चौराहे हैं, जहां गाड़ियों की बेतरतीब पार्किंग, सड़क पर उतर आतीं दुकानों ने मिलकर व्यवस्थित करने के प्रयासों को जैसा झटका दिया है उसकी मिसाल शायद ही मिले। खासकर सदर और हटरी बाजार में तो ऐसे दृश्य आम हैं। फव्वारा चौक की सड़क को ही पार्किंग का रूप दिया जाना हैरत में डालने वाला है।