बुजुर्ग पत्रकार कुलदीप तलवार के निधन से उस पीढ़ी के पत्रकारों के एक युग का अंत हो गया है, जो विभाजन के बाद भारत आए थे। किसी समय वह जाने माने पत्रकार कुलदीप नैयर के साथी रहे। उनसे मेरा परिचय 2010 मेंं अमर उजाला में आने के बाद हुआ था। उनकी विनम्रता और उदारता अचंभित कर देती थी। वह करीब 91 वर्ष के थे। उनके सामने से पत्रकारिता की कई पीढ़ियां निकल गईं।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान सहित दक्षिण एशिया की राजनीतिक गतिविधियों में उनकी पैनी नजर थी। वह खासतौर से पाकिस्तान की राजनीतिक गतिविधियों और मीडिया पर बारीक नजर रखते थे। अमर उजाला से वह पहले से जुड़े हुए थे और यह सिलसिला लंबा चला।
अमर उजाला के संपादकीय पेज पर लेख के सिलसिले में अक्सर उनसे बात होती थी। वह मेल से लेख भेजते थे और फोन करते थे और इस बहाने उनसे बात होती थी। बातचीत करते लगता नहीं था कि उनसे उम्र और पीढ़ियों का फासला है। अपने लिखे को लेकर वह काफी सजग रहते थे। लिहाजा जब पाकिस्तान के घटनाक्रम में कोई बदलाव होता था तो वह फोन कर अपने लेख में त्वरित संशोधन भी करवाते थे।
हिन्दी और उर्दू में उनकी खासी पकड़ थी। उन्होंने घटनाक्रम बदलने के साथ अपने लेख में बदलाव करने की छूट दे रखी थी। वह अड़ियल नहीं थे कि अपने लिखे को ही ब्रह्म सत्य मान लें। वह लकीर के फकीर भी नहीं थे। उनके लंबे लेखों में कांटछांट को लेकर भी कभी उन्होंने एतराज नहीं किया, उलटे कई बार वह कहते थे कि आपने कॉपी अच्छी तरह से संपादित कर दी।
लेख के जरिये शुरू हुए रिश्ता कब उनके स्नेह में बदल गया पता नहीं चला। मेरे मित्र और अमर उजाला के साथी कल्लोल चक्रवर्ती से उनका पुराना परिचय था। उनके जरिये ही मेरा परिचय एक नए रिश्ते में बदल गया। कल्लोज जी के साथ ही उनके घर भी जाना हुआ था। दीवाली और नए वर्ष पर शुभकामनाओं वाला उनका फोन अक्सर पहले आ जाता था और मैं अपनी व्यस्तता को कोसता था। अमर उजाला में मेरे छपी रिपोर्ट हो या कभी कोई लेख, वह जरूर फोन करते थे।
सच कहूं तो पाकिस्तान की सियासत को समझने में उनके लेखों ने काफी मदद की। विभाजन को लेकर भी उनमें एक दर्द था और कई बार बातचीत में झलक भी जाता था। लेकिन उनमें वैमनस्य का भाव नहीं था, जिसने आज दो पड़ोसी देशों में जहर घोल रखा है। पाकिस्तान की बारीकी को समझने वाले कम ही पत्रकार हैं। कुलदीप तलवार ऐसे विरले पत्रकार थे। सादर नमन!
साभार वरिष्ठ पत्रकार सुदीप ठाकुर के फेसबुक वॉल से