किसान और कृषि उपकरण बनाने वाले सांसत में

भाटापारा। बोनी करना है। लगेंगे नए लोहा नागर। खेतों को समतल करना है तो जरूरत होगी, फावड़ा और गैंती की। मेड़ में लगाना है दलहन तिलहन। चाहिए कुदाली और खुरपी। जरूरी पैसे लेकर बाजार पहुंच रहे किसानों की जेब खाली हो जा रही है, क्योंकि इन औजारों की कीमत डेढ़ गुना बढ़ चुकी है।

फग्गन नाम है उस किसान का, जो खेती-किसानी के लिए जरूरी औजार खरीदने बाजार आया हुआ है। जैसे-तैसे करके खाद- बीज का इंतजाम तो कर लिया। अब बारी है, जरूरी औजार की खरीदी की, लेकिन जो कीमत बताई जा रही है, उसके बाद, उतनी मात्रा ही खरीदी की जा रही है जितने में काम चलाया जा सके और पैसे भी ज्यादा ना लगे। जी हां, जान लीजिए , लोहा की कीमत, अब 55 नहीं 85 रुपए प्रति किलो हो चुकी है। इसलिए इससे बनने वाली सभी सामग्रियों के दाम भी बढ़ गए हैं।


होश उड़ा रही कीमत

लोहा नागर। खेती का पहला उपकरण। फावड़ा ,गैंती, खुरपी, टंंगिया, हंंसिया और सब्बल ही नहीं ,हर वह चीज, जो लोहे से बनी है और खेती के काम आती है ,इन सभी की कीमत डेढ़ गुना बढ़ चुकी है ।लॉकडाउन के पहले दौर में इसके लिए जरूरी लोहा मिलता था 55 रुपए किलो पर। अब मिल रहा है 85 रुपए किलो। जिसकी वजह से कृषि औजारों की कीमत बढ़ रही है।

यहां भी आई गर्मी


ट्रैक्टर पहले ही महंगे हो चुके हैं। अब नंबर है केजव्हील, कल्टीवेटर, प्लाउ, लेबलर और रोटावेटर का, जिसकी तत्काल जरूरत है। पहुंचती मांग के बाद उपकरण बनाने वाली ईकाईयां उतनी ही मात्रा में लोहा की खरीदी कर रहीं हैं, जितनी मांग है। आ रहे उपभोक्ता को,उसकी ही खरीदी क्षमता पर यह उपकरण बेचे जा रहे हैं। यहां भी वही किसान पहुंच रहा है जो छोटे औजारों की कीमत से हलाकान है।


कारण जो बताए जा रहे

लोहा में तेजी को लेकर तरह-तरह की चर्चा है । सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि पीक सीजन में उद्योगों के ऑक्सीजन सिलेंडर को आरक्षित कर लिया गया ।इसके चलते उद्योगों को तगड़ा ,झटका लगा स्थिति सामान्य होती, इसके पहले मांग का दबाव बढ़ा। फलतः कीमतें उछाल लेने लगी। परिणाम आज लोहे के उपकरणों में तेजी के रूप में हमारे सामने हैं। इससे निर्माण और कृषि क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है क्योंकि दोनों के लिए यह समय बेहद अहम है।