हमारे देश ने आजादी के पचहत्तर बरस पूरा कर लिया। इन बीते बरसों में संसद भवन से सड़क तक बहुत कुछ बदल गया, और भी बदलाव हो ही रहे हैं। कांक्रीट की बदलती तस्वीरों में कैसा है आम आदमी का चेहरा। ऐसे ही आम आदमी है सौदागर, जी हाँ उनका नाम ही है सौदागर। परिवार की आजीविका के लिए मेहनत के कुछ भी काम कर लेता है। कभी हमाली तो कभी अपनी मर्जी से रिक्शे खींच लेता है। ऐसा ही कुछ उसकी पहचान भी है। लोग उसे जानते है वो लोगों को जानता है। फिर वो गुस्से में क्यों है…!


हमारे देश ने आजादी के पचहत्तर बरस पूरा कर लिया। इन बीते बरसों में संसद भवन से सड़क तक बहुत कुछ बदल गया, और भी बदलाव हो ही रहे हैं। कांक्रीट की बदलती तस्वीरों में कैसा है आम आदमी का चेहरा। ऐसे ही आम आदमी है सौदागर, जी हाँ उनका नाम ही है सौदागर। परिवार की आजीविका के लिए मेहनत के कुछ भी काम कर लेता है। कभी हमाली तो कभी अपनी मर्जी से रिक्शे खींच लेता है। ऐसा ही कुछ उसकी पहचान भी है। लोग उसे जानते है वो लोगों को जानता है। फिर वो गुस्से में क्यों है…!

देखिए … सुनिए ….


चल चित्र में दो जगह अशिष्ट भाषा का प्रयोग है। हमने इसको एडिट नहीं किया। हमारा मानना है कि अपनी बेबसी पर ये खुद पर किया गया हिंसा है , जो सिस्टम और सरकार में मौजूद लोगों तक पहुंचनी चाहिए। फिर भी जिनको लगता है कि ये हिस्सा म्यूट होनी थी उनसे सम्मान के साथ खेद प्रकट करते हैं।