उसने कहा था
प्रवासी पक्षी पिछले साल नहीं आये थे ।
वो तो प्रवासी हैं,
कोई ना कोई और टापू
अपनी प्रकृति का स्थान
खोज लेंगे !
… और देखिए
उन्होंने खोज ही लिया
अपनी मनपसंद रहवास
और घास-फूंस, तिनके जमा कर
बना लिए अपने घोसले,
खुश हैं,
कलरव कर खुशी जता रहे हैं
कि अब वहीं पर ही बढे़गा उनका कुनबा,
जहाँ शहर के शिकारी
शीश महल बनाने
मानवता को शर्मसार करने जाल बिछा रहे थे।
लो फिर हो गया गुलज़ार
खुंटाघाट का वो आईलैंड
मेहमान पक्षियों से।


ओपन बिल्ड स्टोर्क, पेंटेड स्टोर्क, कोर्मोरेंट्स
ऐसे ही नाम जानकारों ने बताया हैं।
बिलासपुर जिले में रतनपुर के करीब
सौ साल के हो रहे खुंटाघाट बांध में
आ गए हैं मेहमान परिंदें ।
आ जाते हैं ये हर साल,
ठीक मानसून के आने के पहले,
खुले नीले आसमान में
हजारों मील दूर से उड़ान भरकर,
और देख लेते हैं ऊंचे आसमान से
पानी से घिरे
इस बेजान टापू पर जीवन।
यहीं पर उतर आते हैं अपना कुनबा बढ़ाने,
फिर घास-फूंस तिनके जमा कर
कर बना लेते हैं यहाँ-वहाँ घोसले,
जिनमें आ जाते हैं अंडे
और पलता है उनमें जीवन,
फिर लौट जाते हैं अपने ठिकानों पर
अपने बड़े हो चुके कुनबे के साथ,
यही जीवन है,
ऐसे ही बढ़ती है प्रकृति,
इसके साथ छेड़छाड़
वैसे ही है जैसे खुदकुशी।