काम के दिन कर रहे कम

भाटापारा । उम्मीद थी, सीजन के बेहतर मांग की लेकिन अब यह टूटती नजर आ रही है। बात हो रही है उस पोहा हब की, जो नियमित संचालन की अवधि कम करने के लिए विवश है। यह इसलिए क्योंकि प्रतिस्पर्धी राज्यों से कड़ा मुकाबला करना पड़ रहा है।

सावन का महीना याने पोहा की मांग का महीना। पहला साल ऐसा होगा, जब पोहा मिलें कमजोर मांग और कमजोर उठाव का सामना कर रहीं हैं। स्थिति में भविष्य में सुधार की संभावना जरा भी नहीं है क्योंकि पोहा क्वालिटी का महामाया धान पहली बार रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा हुआ है। ऐसे में उत्पादन की कीमत विवशता में बढ़ानी पड़ रही है।

तेजी बरकरार

पोहा क्वालिटी का महामाया धान इस बार साल के शुरू से मजबूती दिखा रहा है। यह मजबूती अभी भी बनी हुई है। प्रतिस्पर्धी खरीदी तेजी की दूसरी वजह मानी जा रही है। तीसरा प्रमुख कारक स्टॉकिटों की लिवाली को माना जा रहा है। ऐसे में महामाया धान 2300 से 2500 रुपए क्विंटल पर पहुंचा हुआ है। इसमें मंदी के आसार फिलहाल नहीं हैं।

कीमत मजबूत, मांग कमजोर

3800 से 4200 रुपए क्विंटल। पोहा की यह कीमत उपभोक्ता राज्यों के बीच काफी ऊंची मानी जा रही है। इसलिए मांग का प्रवाह प्रतिस्पर्धी पोहा उत्पादक राज्यों की ओर जा रहा है, जहां का उत्पादन छत्तीसगढ़ के पोहा से लगभग 200 रुपए क्विंटल नीचे है। पोहा हब पर यह दोहरी मार है। जिससे बचने के उपाय नजर नहीं आते।

संचालन अवधि कम

स्थितियों में बदलाव या राहत की संभावना नहीं है। यह देखकर पोहा मिलों ने संचालन अवधि कम करनी चालू कर दी है। मिली जानकारी के अनुसार अब सप्ताह में 2 दिन उत्पादन बंद किया जाने लगा है ताकि उत्पादन पर बढ़ती लागत कम की जा सके। यह प्रतिकूल स्थिति कब तक रहेगी ? जैसे सवालों के जवाब फिलहाल भविष्य के गर्भ में हैं।

बेहद तेज है धान

पोहा क्वालिटी के धान की कीमत बेहद तेज है इसलिए पोहा की कीमत बढ़ी हुई है। पोहा की मांग कमजोर होने की वजह से संचालन की अवधि कम करने जैसा फैसला लेना पड़ रहा है।

रंजीत दावानी, अध्यक्ष, पोहा मिल एसोसिएशन, भाटापारा