औद्योगिक क्षेत्र के लिए है वरदान

छत्तीसगढ़ में तलाशी जा रहा संभावनाएं

सतीश अग्रवाल

बिलासपुर । हर हिस्सा काम का है। गुणों के खजाने में बेहद अनमोल है इसकी जड़, जिसके बूते गर्म धरती को ठंडा रखने में मदद मिलती है। नाम है “सिमरौबा ग्लौका या पैराडाइज ट्री”। दक्षिण के 3 राज्यों में सफल खेती के बाद वानिकी वैज्ञानिक छत्तीसगढ़ में संभावनाएं तलाश रहें हैं क्योंकि बेहद जरूरी है इसका यहां होना।

वानिकी वृक्षों के बीच अब तक अज्ञात रहा सिमरौबा शायद एकमात्र ऐसा वृक्ष माना जा रहा है, जिसका हर हिस्सा अनमोल है। यह इसलिए क्योंकि प्रदेश को ऐसी ही प्रजाति की नितांत आवश्यकता है। खासकर औद्योगिक क्षेत्र के लिए सिमरौबा वरदान होगा क्योंकि पर्यावरण को तेजी से सुधारने में यह सक्षम है।

बेहद अनोखा इसलिए

70 वर्ष की उम्र होती है सिमरौबा वृक्ष की। महज 4 से 5 वर्ष की उम्र होने की अवस्था में इसकी जड़ें घना फैलाव लेती हैं। यह फैलाव या विस्तार ही, गर्म होती धरती को ठंडा करने में मदद करता है। बेहद दिलचस्प यह कि यही गुण भू-जल स्रोत को थाम कर रखता है। दोतरफा लाभ माना जा रहा है क्योंकि इसकी जरूरत आज सबसे ज्यादा है।

विशेष है सिमरौबा

घनी जड़ प्रणाली की वजह से भूमि के पोषक तत्व को बनाकर रखने के अलावा सूक्ष्म पोषक मित्र कीट को भी बढ़ाता है सिमरौबा का वृक्ष। अपनी इस विशेषता की वजह से ही यह प्रजाति उस क्षेत्र के लिए वरदान मानी गई है, जहां अब तक नए जंगल तैयार नहीं हो सके हैं। याने यह नए जंगल बनाने में भी मदद करता है।

शुद्ध प्राण वायु

40 से 50 फीट ऊंचाई वाला सिमरौबा का वृक्ष वायुमंडल के कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन के रूप में परिवर्तित करता है। इतना ही नहीं ग्लोबल वार्मिंग कम करने के साथ सौर ऊर्जा को जैव रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन करने में सक्षम है सिमरौबा का वृक्ष।

यहां सफल परिणाम

पत्तियां, फूल और बीज के साथ तना व जड़ों में बहुमूल्य गुणों को समेटे सिमरौबा का वृक्ष आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में बहुतायत के साथ जंगल के रूप में देखा जा रहा है। अध्ययन और अनुसंधान के बाद अब छत्तीसगढ़ में प्रवेश के लिए तैयार है सिमरौबा।

खाद्य तेल एवं बायोडीजल का महत्वपूर्ण स्रोत

सिमरौबा एक बहुउद्देशीय वृक्ष है जिसका प्रत्येक भाग उपयोगी है। इसके बीज से लाभकारी खाद्य तेल निकाला जाता है। इससे बायोडीजल बनता है और तेल निकालने के बाद बचे अवशेष को खाद के रूप में उपयोग किया जाता है। यह वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध और अनुपजाऊ भूमि को सुधारने का कार्य करता है। लकड़ी का उपयोग फर्नीचर, खिलौने, माचिस तथा लकड़ी की लुगदी पेपर बनाने के काम आती है। यह पौधा एक प्राकृतिक औषधि भी है। भारत के लिए बायोडीजल और खाद्य तेल की आत्मनिर्भरता के लिए इस पेड़ की खेती बहुत उपयोगी है।

अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर।