औसत बारिश में बेहतर बढ़त

लकड़ी, छाल और रेशा भी बेहद काम का



बिलासपुर । पथरीली और सूखी पहाड़ियों में बहुत जल्द हरियाली लाई जा सकेगी। इसमें मदद करेगी वानिकी वृक्ष की वह प्रजाति, जिसे भारतीय जैतून के नाम से पहचाना जाता है। बोसवेलिया सेराटा नाम की यह प्रजाति लगभग हर जगह मिलती है।

सफलता। यह शब्द इसलिए जोड़ा जा सकता है क्योंकि बी-सेराटा की यह प्रजाति सूखते पहाड़ों और चट्टानों के बीच बखूबी से अपने लिए जगह बना लेती है। इसका यह गुण ऐसी पहाड़ियों के लिए वरदान बनेगा, जो तेजी से दरक रहीं हैं। वृक्षारोपण के कई उपाय भी जहां काम नहीं आते, वहां के लिए भी बी- सेराटा को आदर्श माना जा रहा है।

जानिए बी-सेराटा को

बी-सेराटा शुष्क पर्णपाती जंगलों की प्रजाति है। यह पहाड़ियों की ढलान और समतल भू-भाग पर मिलता है। सूखा प्रतिरोधी यह प्रजाति अन्य प्रजातियों के प्रति बेहद सहिष्णु होती है। 1.2 से 1.8 मीटर की परिधि और 9 से 15 मीटर की ऊंचाई होती। यह प्रजाति 500 से 1,250 मिलीमीटर औसत बारिश में बेहतर बढ़वार लेती है।

छाल से लोबान

परिपक्वता अवधि के बाद एक वृक्ष की छाल से 1 किलो गोंद हासिल की जाती है। सूखने के बाद इसका उपयोग पूजा और हवन में लोबान के रूप में किया जाता है। बताते चलें कि बी-सेराटा से हासिल इस लोबान की मांग विदेशों में बहुत है। इसलिए भारतीय बाजार में इसकी कीमत बहुत अधिक है।

यह सामग्री रेशा और लकड़ी से

बी-सेराटा की लकड़ियों से गोला- बारूद और अभ्रक पैक करने के लिए बॉक्स बनाया जाता है। रेशा से पेपर पल्प बनाया जाने लगा है। यह विशेषता शायद ही किसी अन्य वृक्ष में होगी। इसकी मदद से विशेष प्रकार का चारकोल बनाया जा रहा है, जो लोहे को गलाने के काम आता है।

बेहद अहम इसलिए

बी-सेराटा को बेहद अहम इसलिए माना जा रहा है क्योंकि उपलब्ध वानिकी वृक्षों में एकमात्र यही प्रजाति ऐसी है, जो हर प्रतिकूल परिस्थिति में भी सूखी पहाड़ियों में हरियाली ला सकती है। यही वजह है कि वन विभाग से अपेक्षा की जा रही है कि पौधरोपण की सूची में इसे भी जगह दें।

सबसे मूल्यवान जड़ी-बूटी

सलई वृक्ष का वानस्पतिक नाम बोसवेलिया सेराटा है । यह बहुत ही उपयोगी वृक्ष है। इससे प्राप्त होने वाली गोंद वनांचलो में रहने वाले लोगों की आजीविका का मुख्य साधन है। गोंद का उपयोग पेंट एवं टेक्सटाइल, फार्मा उद्योग व अगरबत्ती निर्माण में होता है । इसके गोंद से बोसवेलिया अम्ल निकाला जाता है जिसका उपयोग गठिया एवं अन्य रोगों के उपचार में होता है। इसकी छाल का उपयोग पूजन एवं हवन में होता है।

अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज आफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर