उत्पादक कर रहे अच्छे दिन का इंतजार
कम किए जा रहे उत्पादन के दिन
बिलासपुर। टूटता अंतरप्रांतीय कारोबार। लोकल डिमांड नहीं। रही-सही कसर पोहा क्वालिटी के धान की बढ़ती कीमत पूरा कर रही है। इसलिए पूरे सप्ताह की जगह, कुछ दिन ही चल रहीं हैं पोहा मिलें।
अच्छे दिन याने बेहतर उपभोक्ता मांग की प्रतीक्षा कर रहा छत्तीसगढ़ का पोहा उद्योग, अब हताश नजर आता है। चार बड़े उपभोक्ता राज्यों से जैसी मांग निकला करती थी, वह अब बीते दिनों की बात रह गई है। अपने प्रदेश की डिमांड पहले से ही कमजोर है। इस स्थिति में कहीं कोई बदलाव नहीं आया है।

प्रतिक्षा यहां की
कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश। यह राज्य छत्तीसगढ़ में उत्पादित पोहा के सबसे बड़े खरीददार रहे हैं। मांग तो बनी हुई है लेकिन चाही जा रही मात्रा बेहद सीमित है। इससे निरंतर संचालन को गति नहीं मिल रही है। नए उपभोक्ता की तलाश जारी है लेकिन सफलता दूर है।
स्थानीय मांग लगभग शून्य
अंतरप्रांतीय कारोबार में आती टूट के बाद लोकल डिमांड को बढ़ाने के प्रयास किए गए लेकिन उपभोक्ता मांग का संकट यहां भी देखा जा रहा है। स्थितियां कब सामान्य हो पाएंगी ? जैसे सवाल के जवाब छत्तीसगढ़ के पोहा उद्योग के पास भी नहीं है।

संचालन के दिनों में कमी
तमाम तरह की दुश्वारियों के बीच पोहा मिलों ने अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार संचालन की अवधि कम करनी चालू कर दी है। पहले की तरह काम के घंटे कम करने की जगह अब काम के दिन घटाना चालू कर दिया है। यह दो, तीन और चार दिन जैसी अवधि के लिए बंद करने जैसी स्थितियों के रूप में सामने आ रहा है।
यह है भाव
प्रतिकूल स्थितियों के बीच पोहा का होलसेल रेट 3000 से 3500 रुपए क्विंटल के आसपास ठहरा हुआ है। तेज मानी जा रही इस कीमत के पीछे पोहा क्वालिटी के धान की बढ़ी हुई कीमत वजह बनी हुई है, जो इस समय 1900 से 2100 रुपए क्विंटल से नीचे जाने को तैयार नहीं है।

बेहद ठंडा है कारोबार
पोहा में अंतरप्रांतीय कारोबार बेहद ठंडा है। लगभग डेढ़ दशक बाद आई यह स्थिति नियमित संचालन में बाधा बनी हुई है। इसलिए काम के दिन कम किए जाने लगे हैं।
– कमलेश कुकरेजा, अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ पोहा मिल एसोसिएशन, रायपुर