तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था
बिलासपुर। जिले का शतक पूरा करता नैसर्गिक जलाशय खुंटाघाट इन दिनों प्रबुद्ध लोगों के बीच चर्चा में है। मुद्दा यहाँ की जैव विविधता के अस्तित्व के संकट का है. अब जैव विविधता से रोजगार, रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहे आम लोगों क्या लेना देना। बौद्धिक वर्ग से इसका सरोकार है, इसलिए इस पर सोशल मीडिया में चर्चा गरम है। साथ में सील सिक्के के साथ कागज भी दौड़ रहे हैं।

चर्चा शुरू हुई गरुवार 9 मार्च की दोपहर से जब छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल की मेजबानी वाला आमंत्रण पत्र सोशल मीडिया में तैरने लगा। इस आमंत्रण पत्र से लोगों को खबर हुई कि खुंटाघाट बांध के अघोषित “नो गो ” और प्रवासी पक्षियों के नैसर्गिक प्रजनन वाले टापू पर छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल 2.95 करोड़ रुपए खर्च कर बगीचा और ग्लास रेस्टोरेंट बना रही है। ये वही जगह है जहाँ एक पक्षी का शिकार कर लेने पर एक आदिवासी युवक को जेल की हवा खानी पड़ गई थी। वहीं अब आठ महीने तक हजारों घोंसलों के साथ प्रजनन के लिए गुलज़ार रहने वाले पक्षियों को अमानवीय तरीके से हकालने की तैयारी छत्तीसगढ़ सरकार का उपक्रम छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल कर रही है. छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल की यह करतूत इस इलाके की जैविक विविधता के अस्तित्व के लिए भी बड़ा संकट है। ऐसे में बौद्धिक वर्ग में इसका पुरजोर तरीके से विरोध के लिए आवाज उठना स्वाभाविक ही है।
वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्डा ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा..
गुणदोष पर ध्यान बिना, टापू के सत्यानाश की तैयारी।
बिलासपुर से 25 किमी दूर खारंग नदी में बने बांध के टापू में हर बसर हजारों पक्षी वंशवृद्धि के लिये पहुंचते हैं वहां पर्यटन के नजरिये से कल 10 मार्च को होने वाले शिलान्यास, प्रकृति से खिलवाड़ के लिए काफी होंगे। हजारों पक्षी की प्रजनन स्थली उजड़ जाएगी। यह टापू आने वाले समय में अय्याशी और भांति भांति के अपराध की केंद्र स्थली बन जाएगा।

इस पर छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव का जवाब आया,
भैया प्रणाम , पूर्वाग्रह से केवल सोचने से की अय्याशी एवं अपराध ही होंगे, ग़लत है कोशिश तो पर्यटकों की सुविधा देने की है, प्रवासी पक्षी पिछले साल नहीं आये थे वो तो प्रवासी है कोई ना कोई और टापू अपनी प्रकृति का स्थान खोज लेंगे ! हमारे यहाँ तो ४४ प्रतिशत जंगल है , जहाँ पानी है उसके बाद जंगल ऐसे में तो कुछ भी पर्यटन विकसित ही नहीं हो पाएँगे।

इस पर वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्डा ने फिर लिखा
अटल जी,
शुभाशीष..
मेरा पूरा जीवन वन्यजीव के साथ बीत रहा है। यह प्रवासी पक्षी नहीं है और हर साल स्थानीय प्रवास पर टापू पर प्रजनन के लिए आते हैं। ये कोई और जगह खोज लेगे याने आप भी मान रहे हैं कि वह टापू से उजड़ जायेंगे। जबकि यह इस टापू की नैसर्गिक शोभा हैं टापू इन जलीय पक्षी का है। उनको टापू और परिंदों को बचाना आज की पहली जरूरत है। पर्यटन विभाग के कई होटल सफेद हाथी बने हैं। उनको आर्थिक रूप से मजूबत बनाने सैलानी के पाकिट के मुताबिक दरों से जोड़े तो पर्यटक वहां अधिक पहुंच सकते हैं। मौजूदा खूंटाघाट की पहाड़ी में काफी कमरे का नया और पुराना रेस्ट हाउस है। यहां उनकी केन्टीन भी, पर यह अधिकांश वीआईपी मुफ्तखोरों के लिए हैं जो खाते और पैसे नहीं देते। मेरा विश्वास है टापू में व्यय आने वाले समय मे कोई सार्थक नहीं होगा। जंगल में पर्यटन विकसित नहीं हो पा रहा है। उसका एक कारण टाइगर का नहीं दिखना है। बाकी बहुत से है जिसको आज यहां लिखना गैर जरूरी होगा।

फिर एक पाती…
श्री अटल श्रीवास्तव जी
के नाम पाती।
मुझे याद है ममतामयी राज्यसभा सदस्य श्रीमती वीणा वर्मा हम दोनों से कितना स्नेह करती है कि रात जब उनकी तबीयत बिलासपुर के कुछ बिगड़ी तो मेरे और आपको अपने पास SECL के रेस्ट हाउस में कभी बुलाया था। बीआर यादव जी की छांव में हम दोनों बड़े हुए, साथ स्वीमिंग की है। अपने कल मुझे फेसबुक में भाई सम्बोधित किया तो यह सब पुराने रिश्ते ताजा हो गये।
अटल भाई, आज आपके पास काफी बड़ी ताकत है, इसका उपयोग आम जनता और प्रकृति के सेवा में लगाए। आपके सामने उदाहरण है- हसदेव अरण्य को काटने आतुर गौतम अदाणी को जंगल की हाय कैसे लगी हैं वो अब जंगल को भूल अपने को बचाने में लगा हुआ है।
खूटाघाट का टीला पहली दृष्टि में अपनी नैसर्गिक सुंदरता के कारण वहां पहुंचे लोगो को खींच लेता है। वह अपने आप में मोहक पर्यटन स्थल है। वहां होटल व अन्य निर्माण से परिंदे बेदखल होंगे। इन बेजुबानों की उनकी हाय लग सकतीं हैं।
आप देखे पर्यटन विभाग के कितने होटल सफेद हाथी बने हैं। उनकी दरें कम कर और सेवा बढा कर लाइन में कैसे लाया जाए। यदि इस खूटाखाट के टापू में होटल बन गया तो कौन रुकेगा और वह क्या करेगे?आप खुद सोचे। मेरे अनुभव में यहां निर्माण कुछ सालो बाद अभिशप्त भूत- बंगला हो जाएगा।
राजहठ त्याग देवें, पर यह कठिन है, बाल हठ और त्रिया हठ से भी ज्यादा। राजमेरगढ़ को देखें कितनी सरकार बदल रही है और भवन अधूरे अभिशप्त हैं। वह भी प्रकृति का नैसर्गिक पर्यटन स्थल था और इन बदनुमा निर्माण के बाद बना है, क्योकि इसका क्षेत्रफल इस द्वीप से बहुत ज्यादा है।
उम्मीद करता हूं विचार कर और आम सैलानियों को भाने वाली खूटाघाट की इस सुरभ स्थली से परिन्दों को उजाड़ कर खास आदमी के मौज मस्ती की स्थली नहीं बनने देवें।
प्राण चड्डा।

नजरिया ऐसा भी…
दुर्भाग्यवश हमारे यहाँ सौंदर्यीकरण की परिभाषा बड़ी विचित्र है। हम प्रकृतिक सौंदर्य का सत्यनाश करके “सौंदर्य” पैदा करते हैं। और ये पक्षी तो आसपास के खेतों के घोंघे खा कर फसल को बचाते हैं। किसानों को भी अपना विरोध दर्ज कराना चाहिए। –मोहित साहू पक्षी विशेषज्ञ
ग्लास हाउस तो मानव निर्मित है कहीं भी बनाया जा सकता है। माइग्रेटरी बर्ड्स का स्टॉपेज अपने आप में जैव विविधता का हॉट स्पॉट है। मानवीय रिक्रिएशन क्रियाकलापों के लिए अन्य स्थान ढूंढ विवाद समाप्त किया जा सकता है। प्रकृति से हम है, हम से प्रकृति नही। -सिद्धार्थ शर्मा
पर्यटन विकास के लिए नैसर्गिक वातावरण निर्माण की जगह ग्लास हाऊस क्यों, कम से कम अब तो , जब आंगन भी कांक्रीट के हो गए हैं, हम जंगलों में कांक्रीट या अन्य औद्योगिक सामग्री से निर्माण बंद करें, लोग खुली जगह और शुद्ध हवा लेने अधिक आएंगे । – नंद कश्यप

अटल भाई कि पक्षी नई जगह तलाश लेंगे । यही सोच प्रकृति को बर्बाद कर रही है। यही हम हाथियों के साथ कर रहे है नतीजे सामने है हर दिन हाथी से कुचल कर लोग मर रहे है और हाथी भी। छत्तीसगढ़ में 44 प्रतिशत जंगल सिर्फ कागजों में बच हुआ है । वर्तमान में जो जंगल है वह हमारी धरोहर है । इसी के कारण छत्तीसगढ़ धान का कटोरा भी है जिस दिन ये जंगल नही रहेंगे तब क्या स्थिति होगी सोचना भी मुश्किल है। रहा सवाल पर्यटन का तो मैनपाट से लेकर बस्तर के चित्रकूट तक आपार संभावनाएं मौजूद हैं जहां पर्यटकों के लिए सुविधाओं का विस्तार किया जा सकता है । हमे लगता है जन भावनाओं का सम्मान करते हुए एक खूबसूरत प्राकृतिक जगह का विनाश करने से आप बचेंगे। -आलोक शुक्ला
*चार थाने की हैसियत समझने इस सत्र में प्रस्तुत छत्तीसगढ़ सरकार की बजट पढ़े* विचार सादर आमंत्रित….