गौशालाओं में पहुंच रही मांग
बिलासपुर। सप्लाई लाइन सही रही, तो इस बरस होलिका दहन के लिए गौकाष्ठ छह रुपए किलो की दर पर मिलेगा। इस बात की संभावना जरा कम ही है क्योंकि गोबर का उपयोग क्षेत्र, नित नए परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है।
होली के लिए सात दिन रह गए हैं। लिहाजा गौकाष्ठ बनाने वाली इकाइयों में काम के घंटे बढ़ाए जाने की खबर आ रही है। गौशालाओं में उपले बनाने का काम भी बढ़ चला है क्योंकि होलिका दहन के लिए उपलों मांग निकली हुई है। उपभोक्ता मांग में इसलिए भी बढ़त देखी जा रही है क्योंकि रोजमर्रा की ईंधन की जरूरतों के लिए बाजार से लकड़ियों की खरीदी कीमत बेहद महंगी पड़ रही है।

तेजी के संकेत इसलिए भी
अगरबत्ती, धूप, गत्ता, फ्रेम, सजावटी सामग्री, दीया और प्राकृतिक पेंट निर्माण और होलिकोत्सव पर बाजार की मांग ने गोबर का जैसा महत्व बढ़ाया है, उसे देखकर निर्माण क्षेत्र अचंभित है। अब ईट बनाने वाली इकाईयां भी रुझान दिखा रही हैं। यह सब मिलकर गोबर से बनने वाले गौकाष्ठ की कीमत बढ़ा सकते हैं। यह धारणा बाजार व्यक्त कर रहा है।

अब इसकी मदद
उपभोक्ता मांग में जैसी वृद्धि आई है, उसके बाद गौशालाओं से निकलने वाले वेस्ट मटेरियल का भी सहारा लिया जा रहा है। पूरी तरह इको फ्रेंडली होने की वजह से पैरा का वेस्ट और पराली का भी उपयोग गौकाष्ठ और उपले बनाने में किया जाने लगा है। इसके अलावा वुडन वेस्ट भी बड़े मददगार बन रहे हैं। यह आरा मशीन यूनिटों से मनचाही मात्रा में मिल जा रहा है।

1000 किलो गोबर से 50 किलो गौकाष्ठ
नमी की मात्रा अधिक होने की वजह से ताजा नहीं, दो से तीन दिन पुराना गोबर का उपयोग गौकाष्ठ बनाने के लिए किया जाता है। उत्पादन पर गौर करें, तो 1000 किलो गोबर से 50 किलो गौकाष्ठ बनता है। इस मात्रा को सही माना गया है। निर्माण के दौरान निकलने वाले वेस्ट का उपयोग, पूजा के बाद हवन के लिए किया जा सकता है।