नशे का सामान, हर समय, हर जगह

तेज हॉर्न, तेज गति और मॉडिफाई साईलेंसर दे रहे चुनौती

भाटापारा। एक या दो नहीं, तीन या चार। बाईक पर सवार यह दृश्य चौंकाता है। तेज हॉर्न और तेज गति यह बताती है कि संभल कर चलें, नहीं तो दुर्घटना तय है। रही-सही कसर वे मॉडिफाई साईलेंसर पूरी करते हैं, जो चेतावनी देते हैं कि किनारे चलिए। अंत में आईए चलें, उन दुकानों की ओर, जो बिना सलाह पर्ची ऐसी दवाएं बेच रहीं हैं,जिनका उपयोग सर्दी-खांसी और अनिद्रा जैसी स्वास्थ्यगत परेशानियों के दौरान किया जाता है।

चुस्त पुलिसिंग सुस्त है या कहें ध्वस्त है। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि यातायात नियमों का पालन अभी भी नहीं किया जा रहा है। अर्थ दंड की वसूली तो हो रही है लेकिन नियमों का पालन जैसी अनिवार्यता को लेकर जरूरी सख्ती सिरे से गायब है। इसलिए तेज हॉर्न, तेज गति से बाइक चलाने जैसे दृश्य हर सड़क में आम हो चले हैं। जब यह छूट मिली हुई है, तब नशे के रूप में उपयोग होती दवाइयों के चलन को लेकर सवाल उठाना सही नहीं होगा। वैसे भी अपने शहर को नियम तोड़ने वाले शहरों में अव्वल नंबर पर जगह मिली हुई है। बताते चलें कि इसमें पूरा सहयोग स्थानीय प्रशासन का मिल रहा है।

यह सब हर समय

तेज हॉर्न, मॉडिफाई साइलेंसर, तेज गति। सख्त प्रावधान है इन सब पर रोक के लिए फिर भी सब चलता है शहर में। दुकानें देर रात तक क्यों खुली रहतीं हैं ? यह सवाल नहीं करें। जवाब नहीं मिलेंगे। छेड़खानी की बढ़ती शिकायतों पर कोई कारवाई नहीं होगी। यह भी तय है। शहर पुलिस का निजाम बदला। उम्मीद थी, ऐसी हरकतें नहीं होंगी, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ी। चौक- चौराहों पर जमा हुजूम नजर नहीं आता, उस पुलिस को, जिस पर अवांछित गतिविधियों पर रोक की जिम्मेदारी है।

यह कैसे ?

बिना सलाह पर्ची, सर्दी-खांसी, दर्द निवारक और अनिद्रा दूर करने की दवाई नहीं दी जानी चाहिए। नियम है लेकिन दवा दुकानें जिस तरीके से इन दवाओं का विक्रय कर रहीं हैं, उसे देखते हुए पूछा जा सकता है कि निगरानी और कार्रवाई करने वाले औषधि निरीक्षक कहां है? स्थानीय प्रशासन क्या कर रहा है ?