बिलासपुर। समझो ना इसे ठिठोली, थाने में जल गई गाड़ियों की होली मामला है रतनपुर थाने का । रतनपुर थाने में कल आग लग गई। आग मतलब सचमुच की आग । थाने में मतलब, थाने परिसर में रखी जब्त गाड़ियों में। यह अलग बात है कि आग जब्तशुदा गाड़ियों में लगी, थाने के स्टाफ या वहां पर आए लोगों के गाड़ियों में नहीं लगी । यह सचमुच की आग अर्थात द फायर थी ( The Fire) थी। दिल में लगी आग नहीं थी, इसलिए नुकसान भी सचमुच का हो गया ।   “दिल के फफोले जल उठे  सीने के दाग से, इस घर को आग लग गई घर के चिराग से”।    अब यह  तो पता नहीं कि, आग चिराग से ,  माचिस की तीली, सूर्य के ताप  या किससे  लगी? लेकिन इतना है कि, थाने में खड़ी एक जप्त हुई दुपहिया गाड़ी में आग लगी और उसके बाद फिर ‘चैन लिंक रिएक्शन”। हुआ अर्थात ,एक के बाद एक, सभी गाड़ियां धू-धू कर जलने लग गईं । गाड़ियों का इस तरह जलने को लोग अचरज से  देख रहे थे। कुछ लोग कबीर दास को याद कर रहे थे।

“कबीरा खड़ा बाजार में, लिये लुकाठी हाथ, जो जारै घर आपना चलै हमारे साथ”। कुछ लोग  गर्मी में भी हाथ सेंक रहे थे । जैसे कांग्रेस को लोग ताप रहे हैं  वैसे ही लोग गाड़ियों को भी ताप रहे थे।   गनीमत यह है कि उसी स्थान पर दमकल भी खड़ी थी। फायर बिग्रेड की गाड़ी जलने से बच गई, इस बात से लोगों में बड़ी प्रसन्नता है। कायदे से दमकल तो आग बुझाने के लिए होती है। गर्मी के दिनों में तो उसकी ड्यूटी ही इस तरह की होती है, परंतु किन्ही कारणों से फायर बिग्रेड की गाड़ी सुस्त, शांत सुषुप्त अवस्था में पड़ी थी। इधर आग लगी थी और फायर ब्रिगेड बुझाने के बजाय आग ताप  रही थी।

पुलिस विभाग में आए नए रंगरूटों ने सामाजिक दायित्व को समझा और बाल्टी में पानी भर -भर कर, रेत भर- भर कर आग बुझाने का प्रयास किया, जिससे जितना बन पड़ा लोगों ने प्रयास किया । “दमकल बेचारे का फूल रहा था दम, उसे नहीं  था ‘कल’ ”।  और वह वहां से दिया चल, गाड़ी हो गई अचल सीने में अरमान रह गए मचल-मचल। कबीरदास जी कहते हैं “एक अजूबा देखा रे भाई कुएं में लग गई आग , मिट्टी-पानी  सब जल गए, मछली खेले फाग”। यह महीना फागुन का नहीं है समय फाग खेलने का नहीं है, लेकिन लोग खेल रहे थे।

बिलासपुर के लोग याद कर रहे थे किसी समय आरटीओ दफ्तर में समय-समय पर आग लगते रहती थी, और आवश्यक दस्तावेज स्वाहा  होते रहते थे। अर्थात यदि कोई बड़ी गड़बड़ी होती थी उसके बाद आग में गड़बड़ियां स्वाहा हो जातीं थीं । थानों में भी अब यही पद्धति आने लग गई है। बहुत सारी गाड़ियां, कबाड़ इकट्ठा हुआ रहता है; बीच-बीच में अग्नि देव कृपा करेंगे और समय-समय पर बहुत सारी गंदगी, अनावश्यक परेशानियों से थाने वालों को निजात दिलाएंगे। दुष्यंत कुमार कह गए  हैं “पीर हो गई है पर्वत सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए मेरे सीने  में न सही तेरे सीने में ही सही, कहीं भी हो लेकिन आग जलनी चाहिए”। “तो ये दाग अच्छे हैं, ये आग अच्छी है”। इस तरह की आग  से घर का  कूड़ा- कबाड़ा जल  जाता है, व और अधिकारीगण खुश होते हैं, रोटियां सेंकते हैं। कहते हैं “वाह  उस्ताद वाह”।

साभार बैम्बू पोस्ट डाट काम