महाराष्ट्र और जम्मू के लिए सर्वाधिक आरक्षण
भाटापारा। महाराष्ट्र जाने वाली यात्री गाड़ियां फिर से पैक होने लगीं हैं। जम्मू जाने वालों की कतार एक बार फिर लंबी हो रही है। यह कतार उन लोगों की है, जो रोजगार की तलाश में अपना गांव छोड़कर जा रहे हैं। जी हां, यह सच है कि पलायन का सिलसिला चालू हो चुका है। देखते हुए भी जिम्मेदारों ने चुप्पी साध रखी है।
महामारी से जहां जीवन शैली में भारी बदलाव आया है, वहींं रोजगार के अवसर भी कम कर दिए हैं। कामकाज और रोजगार के अवसर, जिस तेजी से धरातल पर आए, उसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन का दौर फिर से चल पड़ा है। स्टेशन में रोजाना शाम और देर रात तक ग्रामीणों की भीड़ इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं। बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि मनरेगा के काम गति क्यों नहीं ले रहे हैं ? जनपद और जिला पंचायत ने चुप्पी क्यों साध रखी है ? श्रम विभाग ने दूरी क्यों बनाई हुई है ?
मनरेगा से राहत नहीं
पलायन जिस गति से जोर पकड़ रहा है, उसके बाद मनरेगा जैसी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना पर सवाल उठने लगे हैं। काम की संख्या का कम होना। विलंब से मजदूरी भुगतान, यह दो ऐसे प्रमुख कारण हैं, जिनकी वजह से दीर्घकाल तक काम मांगने वाले ग्रामीण क्षेत्रों का मोहभंग होने लगा है। पलायन का एक कड़वा सच यह भी है।
यहां के लिए सर्वाधिक
यात्री ट्रेनों से जा रहे, मजदूर वर्ग की पहली पसंद अभी भी महाराष्ट्र और जम्मू ही बनी हुई है। दिल्ली और उत्तर प्रदेश क्रमशः तीसरे और चौथे नंबर पर हैं। इन चारों प्रांतों के लिए निकल रहे ग्रामीणों का कहना है कि इन राज्यों में लगभग पूरे साल काम मिलता है। लिहाजा इसके लिए ही आरक्षण करवाए जा रहे हैं। जानकारी के मुताबिक लगभग 100 से 150 आरक्षण इन प्रदेशों के लिए प्रतिदिन हो रहे हैं।
जानकारी, फिर भी चुप
नियम है कि ग्राम पंचायतों को ऐसे लोगों के नाम- पता, कहां जा रहे हैं ? इसकी जानकारी लिखित में रखना है। जनपद और जिला पंचायत को रोजगार के दिवस बढ़ाने हैं। श्रम विभाग को ऐसी जगहों की निगरानी करनी है, जहां से आवाजाही हो रही है, लेकिन जिस तरह इन एजेंसियों ने मौन साध रखा है, उससे कार्यशैली पर तो सवाल उठ ही रहे हैं। यह भी प्रश्न उठाया जा रहा है कि आखिर कौन सी वजह है, जिसने हाथ पैर बांध रखे हैं।