अर्थ और समय का नुकसान, घटा रही आवक

भाटापारा। अर्थ और समय। दोनों का बेवजह नुकसान। ऐसे में क्यों जाना चाहिए भाटापारा कृषि उपज मंडी ? किसानों में बनती यह सोच, समीप की ही कृषि उपज मंडियों में आवक बढ़ा रही है। इससे वाजिब ही नहीं, अच्छी कीमत देने वाली मंडी का भरोसा खो रही है, भाटापारा कृषि उपज मंडी।

प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच कृषि उपज मंडी में जिस तरह की गतिविधियां चल रहीं हैं, उससे सिर्फ किसान ही नहीं, हर वह वर्ग सांसत में आ चुका है, जिसका थोड़ा सा भी नाता इस मंडी से है। प्रतिकूल परिस्थितियों की वजह, जो भी हों लेकिन व्यापारियों और अभिकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग यह देखकर सोच में आ गया है कि जिस तेजी से किसान,समीप की कृषि उपज मंडियों की तरफ बढ़ रहे हैं, उसके बाद कैसे बचाया जा सकेगा कारोबार?

इसलिए पड़ोस की मंडियां

बेमेतरा, दुर्ग, रायपुर, कवर्धा और बलौदा बाजार। यह उन शहरों के नाम हैं, जहां की कृषि उपज मंडियों में कृषि उपज की आवक बढ़त ले रही है। क्यों ? जैसे सवाल के पीछे जाने पर, जवाब यह मिल रहा है कि भाटापारा कृषि उपज मंडी में अर्थ और समय का जैसा नुकसान हो रहा है, वैसा कम- से -कम इन शहरों की मंडियों में नहीं हो रहा। भाटापारा कृषि उपज मंडी से किसानों का टूटता भरोसा, साफ संकेत दे रहा है कि कारोबारी माहौल समय रहते नहीं सुधारे गए तो, परिणाम बेहद नुकसान देने वाले हो सकते हैं।

कट्टा में ही भरेंगे

40 किलो वजन क्षमता वाले बारदाने में ही उपज की भराई की जाएगी, 75 किलो वजन क्षमता वाले बारदानों में नहीं। महिला मजदूरों की यह शर्त, व्यापारियों के साथ उन किसानों पर भारी पड़ रही है, जो अपनी कृषि उपज लेकर मंडी पहुंच रहें हैं। किसानों में ताजा प्रतिकूल माहौल इसलिए भारी पड़ रहा है क्योंकि इस वजह से समय और अर्थ, दोनों का बेवजह नुकसान उन्हें हो रहा है।

आपत्ति नहीं लेकिन…

विपरीत स्थितियों के बीच व्यापारियों का यह कहना है कि महिला मजदूरों की बातों से कहीं कोई आपत्ति नहीं है लेकिन 70 किलो वजन क्षमता वाले पुराने बारदानों का निपटान तो होने दीजिए, क्योंकि यह बारदाने हमारे लिए भी दिक्कत हैं। इसलिए कम-से-कम 2 माह का समय दिया जाना चाहिए ताकि ऐसे बारदानों का निपटान किया जा सके।

पहचान खोने का डर

बीते 3 दिन से जैसी परिस्थितियां बनी हुईं हैं उससे किसान, मिलर्स, अभिकर्ता, मंडी प्रबंधन और मजदूरों, सभी को नुकसान हो रहा है। सबसे ज्यादा नुकसान सबसे बड़ी कृषि उपज मंडी जैसी उस प्रतिष्ठा को हो रहा है, जिसे बनाने के लिए बुजुर्ग अभिकर्ताओं, मिलर्स और मजदूरों ने बड़ी मेहनत की थी। यह पहचान बनी रहे, इसके लगातार प्रयास ,आज सबसे बड़ी जरूरत है।