पूरी क्षमता के साथ लोकल के परिचालन की उठ रही मांग

भाटापारा। 22 महीने बाद चालू हुई मासिक सीजन टिकट की सुविधा से भले ही राहत मिली हो लेकिन 60 फ़ीसदी यात्री अभी भी उस सुविधा की बाट जोह रहे हैं, जिससे समय पर कार्यालय और घर पहुंचना मुमकिन हुआ करता था । बता दें कि यात्री ट्रेनों का संचालन पूरी क्षमता से नहीं किया जा रहा है।

दोगुना किराया अभी भी लिया जा रहा है। रिजर्वेशन की बाध्यता जारी है। वरिष्ठ और दिव्यांग यात्री, नियमानुसार मिलने वाली रियायत से दूर हैं। ‘मासिक पास की सुविधा फिर से’, जैसी बातों के बीच 22 माह बाद चालू हुई सुविधा से अब भी एक बड़ा तबका दूरी बनाए हुए है क्योंकि पूरी क्षमता और पूरी संख्या के साथ यात्री ट्रेनें परिचालन से अभी भी दूर हैं। ऐसे में 60 फ़ीसदी यात्री रिजर्वेशन या दोगुना किराया देकर आना- जाना करने के लिए मजबूर है।

यह बड़ी समस्या

मासिक पास की सुविधा चालू हो चुकी है लेकिन सीमित संख्या में चल रही लोकल ट्रेन में उपलब्ध बोगियों की संख्या इतनी कम है कि सभी यात्रियों को जगह नहीं मिल रही है। ऐसी स्थिति में मांग है कि बोगियों की संख्या बढ़ाई जाए या फिर संक्रमण के पहले की स्थितियों में चलने वाली सभी ट्रेनों को परिचालन में लाया जाए। मालूम हो कि सुबह और शाम के बीच के समय में चलने वाली लोकल ट्रेन अभी भी परिचालन से बाहर है।

यह अभी भी दूर

समय पर कार्यालय और घर वापसी करने वाले यात्रियों में 60 फ़ीसदी ऐसे यात्री हैं, जो अभी भी दोगुना किराया या आरक्षण की शर्त पर यात्रा के लिए विवश हैं। लोकल ट्रेनों का परिचालन पूरी संख्या में नहीं होने से यह समस्या आ रही है लेकिन रेल प्रशासन से कोई जवाब नहीं मिलते। इसकी वजह से नौकरी पेशा वर्ग इस सुविधा से फिलहाल दूर ही हैं।

परेशानी यह भी

जिन 40 फ़ीसदी यात्रियों ने मासिक सीजन टिकट की सुविधा ली हुई है, उन्हें काम के बाद का समय, प्लेटफार्म पर ही जाया करना पड़ रहा है क्योंकि इस समय पर रायपुर या बिलासपुर जाने वाले यात्रियों को घर वापसी के लिए महज एक ही लोकल ट्रेन दी गई है। कमजोर आर्थिक तबके का यह यात्री, रोजी -मजदूरी के लिए रायपुर या बिलासपुर जा रहा है। इसलिए मजबूर हैं ऐसे यात्री।

बेरहम खामोशी

रेल प्रबंधन और जनप्रतिनिधियों ने यात्री सुविधा को लेकर जैसा मौन साध रखा है, उसे बेरहमी की मिसाल ही कही जाएगी क्योंकि सुविधा की वापसी में रुकावट को लेकर जैसे तर्क इनसे सुनने को मिल रहे हैं, उससे यात्रियों का एक बड़ा वर्ग सहमत नहीं है। आपदा तीसरे वर्ष में प्रवेश करने जा रही है लेकिन इसे अवसर के रूप में, अभी भी भुनाया जा रहा है।