” क्या उन्हें इंसानों की तरह रहने का हक नहीं?
उनका हक है कि वे चैन के साथ रह सकें उस जमीन पर जिस पर उनका घर है
हमने वो हक दिया है – 31 मई 1998 तक काबिज लोगों को। जमीन के पक्के पट्टे देकर।
झुग्गी बस्तियों में अब कोई किरायेदार नहीं होगा। जो जहां रहता है। अब वही उसका मालिक। किसी की धौंस -धपट नहीं , किसी की दादागिरी नहीं। अब पट्टे पर पत्नी का नाम भी। ये पट्टा सिर्फ जमीन का नही
उस सुकून का है जिनका हक है हर इंसान को”
संवेदनशीलता के नये आयाम।
मध्यप्रदेश सरकार
गुलाबी कागज पर काले अक्षरों में उकेरी गई इबारत को आंखों से दिव्यांग उधेड़ उम्र छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले के रतनपुर वार्ड 15 मेंड्रापारा निवासी आदिवासी सीता राम बिरहोर न तो पढ़ सकता और न देख कर महसूस कर सकता. पर यहीं कोई तेइस साल पहले जवानी के सालों में ये गुलाबी कागज का टुकड़ा उसके हाथों में रख कर बताया गया था कि विशाल आसमान के नीचे जमीन के छोटे से हिस्से पर मिट्टी और घासफूंस से 640 वर्गफीट जमीन पर बनी झोपड़ी का वो मालिक है. अब वो भी जमींदार हो गया है.
बीते दो दशक पहले बनी उसकी झोपड़ी की मिट्टी की सड़क से लगी एक ओर की दीवार दो तीन साल पहले बारिश में धराशायी हो चुकी हैं. लकड़ी की बल्ली पर टिकी छप्पर और रवाई, पुरानी साड़ी और झिल्ली से बनी दीवार के भीतर चार मासूम बच्चों के साथ यही उसका ठिकाना है. संभव है सिर के ऊपर टंगे खतरे को वो देख पाता तो बीवी बच्चों की चिंता में वो कब का ठिकाना बदल चुका होता. आंख वाले जिन पर उसको घर बना कर घर देने की जिम्मेदारी है उन्हें उसके सिर के ऊपर टंगे खतरे की चिंता नहीं है. सरकार उन्हें चिंता करने के लिए वेतन थोड़ी न देती है, तनख्वाह तो काम करने का मिलता है जो कागजों पर होता है. वैसे चिंता हो भी क्यों वो उनका कौन सा अपना है… अब इस जमाने में आदमी गिनती के बचें ही कितने हैं, जो इन्हे भी इंसानियत के नजरिये से आदमी जानकर देखें .
फोटो खींच कर ले गए
सीताराम की पत्नी बृहस्पति बताती हैं कि उन्होंने ने नगर पालिका रतनपुर जाकर तीन बार प्रधानमंत्री आवास के लिए आवेदन भरें है पर उनके आवास को अब तक मंजूरी नहीं मिली है. सवाल करने पर अधिकारी कहते हैं आपका फार्म कंप्यूटर पर डल गया है
बीते बारिश से पहले अधिकारी उनकी झोपड़ी को देखने आए थे उन्होंने झोपड़ी तोड़ने की बात कही, फोटो खींच कर ले गए हैं रहने के लिए दूसरी जगह है नहीं बारिश में कहाँ जाते… इसके बाद कोई आज तक झांकने नहीं आया
वो कागज का टुकड़ा
आवास के लिए भरे आवेदन की पावती होने की बात पूछे जाने पर बृहस्पति बड़ी फुर्ती के साथ झोपड़ी के भीतर चली जाती है और कुछ देर बाद हाथ में लेमिनेटेड कागज का एक टुकड़ा लाकर दिखाती है जो प्रधानमंत्री आवास योजना हाऊसिंग फार आल अरबन मिनिस्ट्री फार हाऊसिंग एंड अरबन पावर्टी एलीवीएशन गवर्नमेंट आफ इंडिया के फार्मेट बी रिक्वायर इस्टीमेट आफ सर्वे का है. जिसमें बृहस्पति की पारिवारिक स्थित के विवरण दर्ज हैं. इसे कब और किसने दिया इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं है. हां इसमें एक बात जरूर उल्लेखित है कि किसी भी जानकारी के लिए अपने मुनिसपालिटी में संपर्क करे. बृहस्पति की नजर में इस कागज के टुकड़े की उपयोगिता इससे ही समझी जा सकती है कि उसने इसे सुरक्षित करने पैसे खर्च कर बकायदा लेमिनेटेड करा लिया है.