रमेश पारस नाथ
इतिहास का विद्यार्थी हूँ आज भी खूब पढ़ता हूँ लेकिन राजा महेंद्र प्रताप सिंह को जितना जानता हूँ आपको बता रहा हूँ।
1886 में एक बालक पैदा होता है जिसको 3 साल की उम्र में हाथरस के राजा-जमींदार हरनारायण सिंह गोद लेते हैं। वही बालक आगे चलकर एक कांग्रेसी बनता है फिर एक राइटर, एक पत्रकार और क्रांतिकारी देशभक्त । देश के लिए अपनी उच्च शिक्षा त्याग देता है और देश को आज़ाद कराने के लिए ऐशो-आराम छोड़कर एक समाजवादी राष्ट्र बनाने का सपना लिए दर ब दर भटकता रहता है। अपने 28 वें जन्मदिन पर वो सुदूर अफगानिस्तान के काबुल में एक निर्वासित सरकार बनाता है स्वयं राष्ट्रपति बनता है और एक मुसलमान मौलवी वरकतुल्लाह को अपना प्रधानमंत्री बनाता है।
लेनिन के थे मित्र
राजा महेंद्र प्रताप लेनिन के मित्र थे। सोवियत सरकार से बाबस्ता था उनका। वो हिंदुस्तान में भी एक समाजवादी सरकार बनाना चाहते थे। सांप्रदायिकता जाति-पात के कट्टर विरोधी थे। अंग्रेजों ने उनपर जिंदा या मुर्दा लाने पर लाखों का इनाम रखा। वे 1925 में जापान चले गए और 32 साल बाद 1946 में भारत लौटे।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह कांग्रेस की नीतियों से सहमत नही थे।वे एक वामपंथी विचारक थे और समाजवादी राष्ट्र की कल्पना करते थे।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह से मेरा अपनापा का भी रिश्ता है। उनके निजी सचिव ज्योति स्वरूप सिंह मेरे शहर आज़मगढ़ के थे। ज्योति स्वरूप सिंह एक पत्रकार थे और “कर्मयोगी” नामक अख़बार निकाला करते थे। इसी अख़बार में राहुल सांकृत्यायन ने आज़मगढ़ के इतिहास-संस्कृति पर करीब 54 लेख लिखे थे।
अटल को हराकर बने थे निर्दलीय सांसद
1957 में मथुरा संसदीय सीट से वे निर्दलीय चुनाव लड़े और जनसंघ के अटल बिहारी बाजपेयी को हराया। अटल बिहारी को तो आप लोग जानते ही होंगे। आज अटल के वारिस महेंद्र प्रताप सिंह को जाट नेता बता रहें है । अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खान के बरक्स खड़ा कर रहें हैं। वे नही जानते कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह की आरंभिक शिक्षा उसी मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेजिएट स्कूल में हुई, जो बाद में अलीगढ़ विश्वविद्यालय बना।
साभार अनिल कुमार अलीन के फेसबुक वाल से