होनहार बिरवान के होते चिकने पात… ऐसे मुहावरे को जीवंत होते देखना भी बड़ा सुखद होता हैं और करोना जैसी महामारी के दौर में वो भी वनांचल के आदिवासी नौनिहालों में देखना तो मानों  ऊर्जा का सुखद संचार करती है। हमें ऐसे ही प्रतिज्ञा और प्रदीप उरांव मिले।

11 साल की प्रतिज्ञा कक्षा पांचवीं और 10 साल के प्रदीप कक्षा चौथीं में पढते है। मां-बाप खेतीहर मजदूरी हैं । मजदूरी कर परिवार की आजीविका चलाते हैं।  परिवार के रोटी-रोजी के जुगाड़ में इन नौनिहालों की भूमिका भी कमतर नहीं है।  परिवार में शामिल चौपायों की जिम्मेदारी इनके कंधों पर ही है। और ये जिम्मेदारी दोनों अपनी पढाई के साथ बखूबी निभा रहे हैं। 

सोमवार की दोपहर ग्राम पंचायत चपोरा के वनांचल में चांपी डेम के नीचे विशालकाय महानीम पेड़ की छांव में मिले तो अपने बस्ते के साथ पढाई में लीन । आसपास इनके चौपाये हरी-हरी घासों को चर रहे थे, और ये ज्ञान की प्यास मिटा रहे थे।

हमने इनसे बातचीत करनी चाही तो नपे-तुले अंदाज में बात की। स्कूल टाइम में इधर बैठकर पढाई करने के सवाल पर सधे अंदाज में बताया कि वे बांसाझाल स्थित अपने  स्कूल जाते हैं, आज देर होने की वजह से इधर मवेशियों की रखवाली के साथ पढाई कर रहे हैं। पेड़ की छांव में प्लास्टिक के तिरपाल बिछा कर अपनी जरूरत की पुस्तकें पसार कर पढ़ाई में लीन थे। प्रतिज्ञा गणित के सवालों को सुलझा रही थी, तो प्रदीप ” पाठ-2 सच्चा बालक ” की तहरीर उकेरने में।