महंगी बिजली, महंगा धान और टूटते बाजार से संकट में पोहा मिलें

रायपुर। महंगी बिजली, महंगा धान। बंद हैं स्कूलें और बंद हैं स्ट्रीट फूड काउंटर। महाराष्ट्र जैसे बड़े उपभोक्ता राज्य की भी मांग की मात्रा आधी रह गई है। ऐसे में प्रदेश की पोहा मिलें, काम के घंटे और उत्पादन के दिन कम करके अस्तित्व बचाने की कोशिश में हैं।

बीता साल कोरोना की भेंट चढ़ गया। चालू साल सामान्य होता तो नजर आता है लेकिन स्कूलें अब भी बंद हैं। स्ट्रीट फूड काउंटर दिखाई तो देते हैं, लेकिन इनका भी समय बेहद कम किया जा चुका है। ऐसे में प्रदेश की पोहा मिलों को उम्मीद थी कि बड़ा खरीददार राज्य, महाराष्ट्र का साथ मिलेगा लेकिन कोरोना की वापसी ने सुधरती स्थितियों पर फिर से ब्रेक लगा दिया है। फलतः सामान्य दिन की तुलना में, आधी मांग ही निकल रही है। हालात सामान्य होने के इंतजार में यूनिटों ने अब कामकाज के घंटे कम करने चालू कर दिए हैं तो कुछ मिलों में सप्ताह में 4 या 5 दिन ही काम किए जाने लगे हैं।


स्कूलों के खुलने का इंतजार

बीते 14 महीने से बंद, स्कूल- कॉलेजों के गेट खुल तो गए हैं लेकिन चहल-पहल अब तक दिखाई नहीं देती। बड़ी खरीददार थीं स्कूलें, पोहा की लेकिन शत-प्रतिशत उपस्थिति पर सख्ती के साथ लगाई गई ब्रेक ने यूनिटों के सामने संकट पैदा कर दिया है। संभावना थी कि सुबह-शाम खुलने वाले स्ट्रीट फूड काउंटर से मांग निकलेगी लेकिन ऐसी स्थिति अब तक नहीं आ सकी है।


यह निकले हाथ से

रेल सेवाएं वापस हो रहीं हैं लेकिन पूरी क्षमता के साथ नही चलने और हॉकरों पर बंदिश से मिलों के सामने इस बाजार को भी हाथ से निकलता देखना एक मजबूरी ही है। स्टेशनों के फूड काउंटर में भी ताले लगे हुए हैं। उत्पादन के बाद, विपणन के लिए यह भी महत्वपूर्ण जगह रखते हैं लेकिन मंत्रालय से अब तक अनुमति नहीं मिली है।


उपभोक्ता राज्यों से भी मांग नहीं

छत्तीसगढ़ में उत्पादित पोहा की खरीदी करने वाले राज्यों में महाराष्ट्र हमेशा से अव्वल नंबर पर रहा है लेकिन कोरोना की वापसी ने पोहा की मांग आधी कर दी है क्योंकि आंशिक लॉकडाउन जैसे फैसले अब तक प्रभावी हैं। बता दें कि महाराष्ट्र के अलावा तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश को भी छत्तीसगढ़ से पोहा की सप्लाई होती है।


उत्पादन किया आधा

घरेलू बाजार और पड़ोसी खरीददार राज्यों की सीमित खरीदी के बीच संकट के दिन देख रहीं राज्य की पोहा यूनिटों ने काम के घंटे कम करने शुरू कर दिए हैं तो कुछ यूनिटें, सप्ताह में 4 या 5 दिन ही चल रहीं हैं। ऐसे फैसले के बाद भी राहत की खबर ,ना बाजार से आ रही है ना सरकार की ओर से। बता दें कि “उम्मीद” जैसे शब्द अब यहां नहीं बोले जाते।


धान अप ,पोहा डाउन

उत्पादन का स्तर बनाए रखने की कोशिश में लगीं पोहा मिलों को धान की खरीदी 1400 से 1600 रुपए पर करनी पड़ रही है। यह भाव बीते दिनों से 100 रुपए ज्यादा है। जबकि उपभोक्ता की तलाश कर रहीं यूनिटों को अपना उत्पादन 100 रुपए की टूट के बाद 2500 से 2800 रुपए क्विंटल की दर पर बेचना पड़ रहा है।

घरेलू मांग अब तक कमजोर बनी हुई है। उपभोक्ता राज्यों की मांग भी पहले जैसी नहीं निकल रही है। लिहाजा उत्पादन का समय और दिन कम करने जैसे प्रयास हैं ताकि नुकसान का प्रतिशत कम किया जा सके।

  • कमलेश कुकरेजा, अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ पोहा मिल एसोसिएशन, रायपुर