भाटापारा। 1300 से 1400 रुपए किलो। तय थी सांगरी में यह कीमत। निश्चित है 1500 रुपए किलो तक पहुंचना क्योंकि कीट प्रकोप ने तैयार फसल को काफी नुकसान पहुंचाया है।
राजस्थान की रेतीली भूमि पर तैयार होने वाली सब्जी ‘सांगरी’ में आ रही तेजी ने कारोबारियों को हैरान किया हुआ है। थोड़ी चिंता इसलिए भी है क्योंकि धारणा 1500 रुपए किलो तक जाने की व्यक्त की जा रही है लिहाजा खुदरा बाजार, थोक की तर्ज पर अग्रिम सौदे ले रहा है ताकि सौदे में निश्चितता बनी रहे।

इसलिए तेजी
राजस्थान के चुरू, नागौर, सीकर और झुंझुनू की मरुभूमि, सांगरी के लिए पहचानी जाती है। जलवायु परिवर्तन से सब्जी की यह प्रजाति भी अछूती नहीं है। खेजड़ी के वृक्षों में जब फलियां तैयार हो रहीं थीं, तब कीट प्रकोप ने तेजी से इसे अपनी चपेट में लिया। सीधा असर कीमत पर पड़ा। ऐसे में आमतौर पर 600 से 700 रुपए किलो पर रहने वाली सांगरी अब 1300 से 1400 रुपए किलो पर पहुंची हुई है।

धारणा 1500 रुपए किलो की
दोगुनी से आगे बढ़ चुकी सांगरी में तेजी की धारणा इसलिए बरकरार है क्योंकि अब पांच सितारा होटलों की डिमांड बढ़ती देखी जा रही है। इसके अलावा ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों की खरीदी अपनी जगह बनी हुई है। रुझान को देखकर अब अचार निर्माता कंपनियों ने भी सौदे चालू कर दिए हैं। यह तब, जब तैयार फसल लगभग आधी रहने की आशंका है क्योंकि कीट प्रकोप और जलवायु परिवर्तन की वजह से सांगरी की फलियां कम नजर आ रहीं हैं।

जानिए सांगरी को
मरुस्थल में उगने वाले खेजड़ी के वृक्ष पर लगने वाली फली को सांगरी कहते हैं। इस फल्ली की लंबाई 6 से 10 इंच होती है। इसमें छोटे-छोटे बीज होते हैं। कच्ची होने की स्थिति में हरी और सूखने के बाद भूरे रंग की हो जाती है। दोनों ही स्थितियों में इससे सब्जी बनाई जा सकती है। मार्च के अंतिम सप्ताह में खेजड़ी के वृक्षों में पुष्पन होता है। अप्रैल मध्य और अंत तक तैयार हो जाती है सांगरी कटाई के लिए।

रेगिस्तान का जीवनदाता
सांगरी एक महत्वपूर्ण शुष्क व अर्ध-शुष्क क्षेत्रीय वृक्ष प्रजाति है, जिसे इसकी बहुपयोगिता के कारण ‘रेगिस्तान का जीवनदाता’ भी कहा जाता है। यह वृक्ष न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी फली (सांगरी) भी पोषण एवं आर्थिक दृष्टि से अत्यंत लाभकारी है। सांगरी में प्रोटीन, फाइबर और आवश्यक खनिज प्रचुर मात्रा में होते हैं, जिससे यह सूखे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत बनती है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर